गणेश चतुर्थी, सकट चतुर्थी, तिल चतुर्थी की कथा / Ganesha Chaturthi Sakat
Chaturthi, Til Chaturthi ki katha
सकट चौथ यानी संकष्ट चतुर्थी से संबंधित कई कथाएं प्रचलित हैं, जिसमें गणेश जी का अपने माता-पिता की परिक्रमा करने वाली कथा, नदी किनारे भगवान शिव और माता पार्वती की चौपड़ खेलने वाली कथा, कुम्हार का एक महिला के बच्चे को मिट्टी के बर्तनों के साथ आग में जलाने वाली कथा प्रमुख रूप से शामिल है। आज आपको सकट चौथ पर तिलकुट से संबंधित गणेश जी की एक कथा के बारे में बताते हैं।
एक समय की बात है. एक नगर में एक साहूकार अपनी पत्नी के साथ रहता था। वे दोनों पूजा पाठ, दान आदि नहीं करते थे। एक दिन साहूकारनी अपने पड़ोसन के घर गई। वहां वह पूजा कर रही थी। उस दिन सकट चौथ थी।साहूकारनी ने पड़ोसन ने सकट चौथ के बारे में पूछा, तो उसने बताया कि आज वह सकट चौथ का व्रत है। इस वजह से गणेश जी की पूजा कर रही है। साहूकारनी ने उससे सकट चौथ व्रत के लाभ के बारे में जानना चाहा। तो पड़ोसन ने कहा कि गणेश जी की कृपा से व्यक्ति को पुत्र, धन-धान्य, सुहाग, सबकुछ प्राप्त होता है। इस पर साहूकारनी ने कहा कि वह मां बनती है तो सवा सेर तिलकुट करेगी और सकट चौथ व्रत रखेगी। गणेश जी ने उसकी मनोकामना पूर्ण कर दी। वह गर्भवती हो गई. अब साहूकारनी की लालसा बढ़ गई। उसने कहा कि उसे बेटा हुआ तो ढाई सेर तिलकुट करेगी। गणेश जी की कृपा से उसे पुत्र हुआ। तब उसने कहा कि यदि उसके बेटे का विवाह हो जाता है, तो वह सवा पांच सेर तिलकुट करेगी।
गणेश जी के आशीर्वाद से उसके लड़के का विवाह भी तय हो गया, लेकिन साहूकारनी ने कभी भी न सकट व्रत रखा और न ही तिलकुट किया। साहूकारनी के इस आचरण पर गणेश जी ने उसे सबक सिखाने की सोची। जब उसके लड़के का विवाह हो रहा था, तब गणेश जी ने अपनी माया से उसे पीपल के पेड़ पर बैठा दिया। अब सभी लोग वर को खोजने लगे। वर न मिलने से विवाह नहीं हुआ।
एक दिन साहूकारनी की होने वाली बहू सहेलियों संग दूर्वा लाने जंगल गई थी। उसी समय पीपल के पेड़ पर बैठे साहूकारनी के बेटे ने आवाज लगाई ‘ओ मेरी अर्धब्याही’। यह सुनकर सभी युवतियां डर गईं और भागकर घर आ गईं। उस युवती ने सारी घटना मां को बताई। तब वे सब उसे पेड़ के पास पहुंचे। युवती की मां ने देखा कि उस पर तो उसका होने वाला दामाद बैठा है।
उसने यहां बैठने का कारण पूछा, तो उसने अपनी मां की गलती बताई। उसने तिलकुट करने और सकट व्रत रखने का वचन दिया था लेकिन उसे पूरा नहीं किया। सकट देव नाराज हैं। उन्होंने ही इस स्थान पर उसे बैठा दिया है। यह बात सुनकर उस युवती की मां साहूकारनी के पास गई और उसे सारी बात बताई। तब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ।
तब उसने कहा कि हे सकट महाराज! उसका बेटा घर आ जाएगा तो ढाई मन का तिलकुट करेगी। गणेश जी ने उसे फिर एक मौका दिया लड़का घर आ गया और उसका विवाह पूर्ण हुआ। उसके बाद साहूकारनी ने ढाई मन का तिलकुट किया और सकट व्रत रखा। उसने कहा कि हे सकट देव! आपकी महिमा समझ गई हूं, आपकी कृपा से ही उसकी संतान सुरक्षित है। अब मैं सदैव तिलकुट करूंगी और सकट चौथ का व्रत रहूंगी। इसके बाद से उस नगर में सकट चौथ का व्रत और तिलकुट धूमधाम से होने लगा।
💥सौजन्य:💥
गुरुदेव संतोष त्रिपाठी
📞 7669664349
Also Follow
https://gurudevsantoshtripathi.blogspot.com/
Facebook
https://www.facebook.com/gurudevsantoshtripathiji
youtube
https://www.youtube.com/channel/UCW-ztUDoF7813xd5lnUa1Tw
Instagram
https://www.instagram.com/gurudevsantoshtripathiji/
Hi, I’d like to invite you to join my group. You
can join using the link
https://www.facebook.com/groups/gurudevsantoshtripathi
सबका मंगल हो
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏