चिंतपूर्णी चालीसा (Chintpurni Chalisa) – अर्थ, महत्व व लाभ सहित

 

चिंतपूर्णी चालीसा (Chintpurni Chalisa) – अर्थ, महत्व व लाभ सहित

हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में स्थित माँ चिंतपूर्णी माता का मंदिर बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है जो मातारानी के 51 शक्तिपीठों में से एक है। चिंतपूर्णी माता मंदिर में माँ सती के चरण गिरे थे और तभी से ही इसकी मान्यता बहुत बढ़ गयी थी जिनके दर्शन करने हेतु देश-विदेश से लाखों की संख्या में भक्त हर वर्ष पहुँचते हैं। आज के इस लेख में हम आपके साथ चिंतपूर्णी चालीसा (Chintpurni Chalisa) का पाठ ही करने जा रहे हैं।

॥ दोहा ॥

चित्त में बसो चिंतपूर्णी, छिन्नमस्तिका मात।
सात बहनों में लाड़ली, हो जग में विख्यात॥

माईदास पर की कृपा, रूप दिखाया श्याम।
सबकी हो वरदायनी, शक्ति तुम्हें प्रणाम॥

हे चिंतपूर्णी माता! हे छिन्नमस्तिका माता! आप मेरे मन में वास करो। आप अपनी सात बहनों में सबसे ज्यादा लाड़ली हो और आपकी प्रसिद्धि इस जगत में हर जगह फैली हुई है। आपने अपना श्याम रूप दिखाकर हम सभी पर कृपा की है। आप हम सभी को वरदान देती हो और आपके इस शक्ति रूप को मेरा प्रणाम है।

॥ चौपाई ॥

छिन्नमस्तिका मात भवानी, कलिकाल में शुभ कल्याणी।

सती आपको अंश दियो है, चिंतपूर्णी नाम कियो है।

चरणों की लीला है न्यारी, जिनको पूजे हर नर-नारी।

देवी-देवता हैं नत मस्तक, चैन ना पाए भजे ना जब तक।

हे छिन्नमस्तिका माता!! आप ही माँ भवानी का रूप हो जो इस कलियुग में शुभ फल देने वाली हो। माता सती के कारण ही आपकी उत्पत्ति हुई है और आपका नाम चिंतपूर्णी पड़ा है। माता सती के चरण यहीं पड़े थे और उनकी महिमा सबसे न्यारी है जिनकी पूजा हर कोई करता है। आपके चरणों के सामने तो सभी देवी-देवता अपना शीश झुकाते हैं और आपका भजन किये बिना उन्हें शांति नहीं मिलती है।

शांत रूप सदा मुस्काता, जिसे देखकर आनंद आता।

एक ओर कालेश्वर साजे, दूजी ओर शिवबाडी विराजे।

तीसरी ओर नारायण देव, चौथी ओर मचकुंद महादेव।

लक्ष्मी नारायण संग विराजे, दस अवतार उन्हीं में साजे।

आपका शांत रूप हमेशा मुस्कुराता रहता है जिसे देखकर हमें आनंद की अनुभूति होती है। आपके एक ओर कालेश्वर भगवान तो दूसरी ओर, शिवबाड़ी विराजमान हैं। तीसरी ओर, साक्षात नारायण देवता और चौथी ओर मचकुंद महादेव विराजित हैं। आपके साथ में लक्ष्मी नारायण विराजित हैं और दसों अवतार उसी में ही बसते हैं।

तीनों द्वार भवन के अंदर, बैठे ब्रह्मा विष्णु और शिवशंकर।

काली लक्ष्मी सरस्वती माँ, सत रज तम से व्याप्त हुई माँ।

हनुमान योद्धा बलकारी, मार रहे भैरव किलकारी।

चौंसठ योगिनी मंगल गावें, मृदंग छैने महंत बजावें।

आपके भवन के तीनों द्वारों में ब्रह्मा, विष्णु व शिव शंकर बैठे हुए हैं। माँ काली, लक्ष्मी व सरस्वती तीनो गुणों का प्रतिनिधित्व करते हुए आपके अंदर बसी हुई है। आपके मंदिर में वीर हनुमान भी रक्षक रूप में विराजित हैं तो वहीं भैरव बाबा किलकारी मार रहे हैं। चौसंठ योगिनियाँ मंगलगान कर रही हैं और महंत मृदंग बजा रहे हैं।

भवन के नीचे बावड़ी सुंदर, जिसमें जल बहता है झरझर।

संत आरती करें तुम्हारी, तुमने सदा पूजत हैं नर-नारी।

पास है जिसके बाग निराला, जहां है पुष्पों की वनमाला।

कंठ आपके माला विराजे, सुहा-सुहा चोला अंग साजे।

आपके मंदिर के नीचे बहुत ही सुन्दर बावड़ी बनी हुई है जिसमें से जल बह रहा है। संत लोग हमेशा ही आपकी आरती करते हैं और हम सभी आपकी पूजा करते हैं। आपके मंदिर के पास ही एक बहुत सुन्दर बगीचा है जहाँ तरह-तरह के पुष्प खिले हुए हैं। आपके गले में माला है और आपने चोला पहन रखा है।

सिंह यहां संध्या को आता, शुभ चरणों में शीश नवाता।

निकट आपके जो भी आवे, पिंडी रूप दर्शन पावे।

रणजीत सिंह महाराज बनाया, तुम्हें स्वर्ण का छत्र चढ़ाया।

भाव तुम्हीं से भक्ति पाया, पटियाला मंदिर बनवाया।

शाम के समय में आपके मंदिर में सिंह भी आपकी पूजा करने को आता है। आपके दर्शन को जो भी आता है वह पिण्डी रूप में आपको देखता है। महाराज रणजीत सिंह ने आपके मंदिर पर सोने का छत्र चढ़ाया था। आपकी भक्ति में डूब कर ही उन्होंने पटियाला में आपके नाम का मंदिर बनवाया था।

माईदास पर कृपा करके, आई भरवई पास विचर के।

अठूर क्षेत्र मुगलों ने घेरा, पिता माईदास ने टेरा।

अम्ब क्षेत्र के पास में आए, तीन पुत्र कृपा से पाये।

वंश माई ने फिर पुजवाया, माईदास को भक्त बनाया।

आपने ही अपने भक्त माईदास पर कृपा की और वह ढूंढते-ढूंढते आपके मंदिर के पास पहुँच गया। उस समय संपूर्ण क्षेत्र पर दुष्ट आक्रांताओं मुगलों का शासन था लेकिन माईदास आपके मंदिर के पास आकर रुक गया। आपके सानिध्य में आकर माईदास को तीन पुत्रों की प्राप्ति हुई। आपने ही माईदास के वंश को आगे बढ़ाया और उसे अपना भक्त बना लिया।

सौ घर उसके हैं अपनाए, सेवा में जो तुमरी आए।

चार आरती हैं मंगलमय, प्रातः मध्य संध्या रातम्य।

पान ध्वजा नारियल लाऊं, हलवे चने का भोग लगाऊं।

असौज चैत्र में मेला लगता, अष्टमी सावन में भी भरता।

जो भी माँ चिंतपूर्णी की सेवा करता है, आप उसके घर में वास करती हैं। आपकी दिन के चारों समय आरती की जा सकती है जो सुबह, दोपहर, शाम व रात है। मैं आपके मंदिर में पान, ध्वजा व नारियल चढ़ाता हूँ और हलवे व चने का भोग लगाता हूँ। चैत्र नवरात्र तथा सावन की अष्टमी में आपके यहाँ मेला लगता है।

छत्र व चुन्नी शीश चढ़ाऊं, माला लेकर तुमको ध्याऊं।

मुझको मात विपद ने घेरा, मोहमाया ने डाला फेरा।

ज्वालामुखी से तेज हो पातीं, नगरकोट से भी बल पातीं।

नयना देवी तुम्हें देखकर, मुस्काती हैं प्रेम में भरकर।

मैं आपके यहाँ छत्र व चुन्नी चढ़ाता हूँ और जपमाला लेकर आपका ध्यान करता हूँ। मुझे चारों ओर से संकटों ने घेरा हुआ है और मैं मोहमाया में फंसा हुआ हूँ। आपका तेज तो ज्वालामुखी से भी अधिक है और पूरे नगर से सबसे शक्तिशाली आप ही हैं। नयना देवी भी आपको देखकर प्रेम सहित मुस्कुराती हैं।

अभिलाषा माँ पूरण कर दो, हे चिंतपूर्णी झोली भर दो।

ममता वाली पलक दिखा दो, काम क्रोध मद लोभ हटा दो।

सुख दुःख तो जीवन में आते, तेरी दया से दुख मिट जाते।

तुमको कहते चिंता हरणी, भयनाशक तुम हो भयहरणी।

हे माँ चिंतपूर्णी!! अब आप मेरी सभी मनोकामनाएं पूरी कर दो और मेरे जीवन को खुशियों से भर दो। आप मुझ पर माँ की भांति कृपा कर मुझ पर से काम, क्रोध, मोह, लोभ इत्यादि का साया दूर कर दो। इस जीवन में सुख-दुःख तो आते ही रहते हैं लेकिन आपकी कृपा से दुःख समाप्त हो जाते हैं। आपको तो चिंता को दूर करने वाली कहा जाता है और अब आप मेरे भय का नाश कर मुझे चिंतामुक्त कर दो।

हर बाधा को आप ही टालो, इस बालक को गले लगा लो।

तुम्हरा आशीर्वाद मिले जब, सुख की कलियां आप खिले सब।

कहां तक दुर्गे महिमा गाऊं, द्वार खड़ा ही विनय सुनाऊं।

चिंतपूर्णी मां मुझे अपनाओ, भव से नैया पार लगाओ।

आप अपनी इस संतान की सभी बाधाओं को समाप्त कर गले से लगा लो। जिस किसी को भी आपका आशीर्वाद मिल जाता है, उसका जीवन सुखमय हो जाता है। अब मैं आपकी महिमा का क्या ही बखान करूँ, मैं तो आपके द्वार पर खड़ा होकर आपसे प्रार्थना कर रहा हूँ। अब आप अपने इस भक्त को अपना लीजिये और भवसागर से पार लगवा दीजिये।

॥ दोहा ॥

चरण आपके छू रहा हूं, चिंतपूर्णी मात।
चरणामृत दे दीजिए, हो जग में विख्यात॥

हे माँ चिंतपूर्णी!! मैं आपके चरणों में अपना शीश झुकाता हूँ और अब आप मुझ पर अपनी कृपा कीजिये। आप मेरे जीवन को खुशियों से भर दीजिये और मेरे यश को इस विश्व में फैला दीजिये।

मां चिन्तपुरनी चालीसा (Maa Chintpurni Chalisa) – महत्व

माँ चिंतपूर्णी को माता सती के द्वारा दिखायी गयी दस महाविद्याओं में से एक माना जाता है जो छिन्नमस्तिका माता का ही एक रूप हैं। गुप्त नवरात्रों के समय इनकी पूजा करने का विधान है। इसी के साथ ही माँ सती के चरणों का यहाँ गिरना इनके महत्व को और अधिक बढ़ाने का ही काम करता है। चिंतपूर्णी चालीसा के माध्यम से हमें यही बताने का प्रयास किया गया है।

माँ चिंतपूर्णी चालीसा के माध्यम से हमें माता चिंतपूर्णी के गुणों, महत्व, शक्तियों इत्यादि का ज्ञान होता है। यदि हम सच्चे मन से चिन्तपुरनी चालीसा का पाठ करते हैं तो उसके कई तरह के लाभ देखने को मिलते हैं। माँ चिन्तपुरनी का संपूर्ण विवरण देने के कारण ही चिन्तपुरनी चालीसा का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है।

माता चिंतपूर्णी चालीसा के लाभ (Mata Chintpurni Chalisa Benefits In Hindi)

यदि आप प्रतिदिन सच्चे मन से माता चिंतपूर्णी का ध्यान कर चिंतपूर्णी चालीसा का पाठ करते हैं तो माँ की कृपा आप पर बरसती है। मातारानी के सभी रूप अलग-अलग जरुर हैं लेकिन अंत में वे माता आदिशक्ति का ही रूप हैं। ऐसे में आप उनकी किसी भी रूप में पूजा करें लेकिन माँ आदिशक्ति आपसे प्रसन्न हो जाती हैं। यही चिंतपूर्णी चालीसा का सबसे बड़ा लाभ होता है।

यदि आपके ऊपर मातारानी की कृपा दृष्टि होती है तो संसार की कोई भी नकारात्मक शक्ति आपके ऊपर हावी नहीं हो सकती है और आपका मन भी शांत होता है। इससे आपके अंदर काम करने की ऊर्जा आती है और मान-सम्मान में वृद्धि देखने को मिलती है। आपका यश चारों दिशाओं में फैलता है तथा सभी तरह की बाधाएं स्वतः ही दूर हो जाती है।




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GURUDEV SANTOSH TRIPATHI

आम इंसान की समस्‍याओं और चिंताओं की नब्‍ज पकड़कर बाजार में बैठे फर्जी बाबा और ढोंगी लोग ज्‍योतिष के नाम पर ठगी के लिए इस प्रकार के दावे करते हैं। ज्‍योतिष विषय अपने स्‍तर पर ऐसा कोई दावा नहीं करता।

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