दिवाली के दिन मां लक्ष्मी और श्री गणेश की पूजा का विधान है। दिवाली पूजा के दौरान लक्ष्मी-गणेश की पूजा से घर में पूरे साल बरकत बनी रहती है।
हर साल कार्तिक माह की अमावस्या के दिन दिवाली का पर्व मनाया जाता है। इस साल दिवाली 12 नवंबर, दिन रविवार को मनाई जाएगी। जहां एक ओर दिवाली का धार्मिक महत्व बहुत माना जाता है वहीं, अमावस्या तिथि पर पड़ने के कारण इसका ज्योतिष में खासा स्थान मौजूद है।
दिवाली के दिन मां लक्ष्मी और श्री गणेश की पूजा का विधान है। दिवाली पूजा के दौरान लक्ष्मी-गणेश की पूजा से घर में पूरे साल बरकत बनी रहती है। वहीं, दिवाली पूजा से जुड़ी एक मान्यता यह भी है कि इस दिन मां लक्ष्मी की आरती नहीं करनी चाहिय। ज्योतिषाचार्य संतोष त्रिपाठी से जानते हैं इस बारे में।
दिवाली पर क्यों नहीं करनी चाहिए मां लक्ष्मी की आरती?
पूजा-पाठ, हवन-यज्ञ, शुभ मांगलिक कार्य आदि में आरती का बहुत महत्व माना जाता है। आरती के बिना धार्मिक कार्य पूर्ण नहीं माने जाते हैं।
हिन्दू धर्म में ऐसा विधान है कि जब किसी देवी-देवता का आवाहन किया जाता है तो उस दौरान शंख बजाय जाता है और पुष्प चढ़ाए जाते हैं।
वहीं, जब किसी देवी-देवता के निमित्त किया गया पूजा-पाठ संपन्न हो जाता है तब उन्हें भोग लगाने के बाद उनकी आरती उतारी जाती है।
आरती हमेशा पूजा-पाठ के अंत में की जाती है। इसलिए आरती इस बात का प्रतीक है कि पूजा-पाठ का समापन हुआ और देव विदा हुए।
जैसे मेहमान के जाते समय हम उठकर खड़े हो जाते हैं। ठीक वैसे ही आरती भी खड़े होकर की जाती है। फिर देवी-देवता प्रस्थान करते हैं।
दिवाली से जुड़ी मान्यता है कि लक्ष्मी-गणेश जी की पूजा के बाद पूरे एक साल तक घर में उनकी मूर्ति रखनी चाहिए और पूजा करनी चाहिए।
फिर अगले साल लक्ष्मी-गणेश जी की मूर्ति विसर्जित करनी चाहिए। इससे दिवाली के बाद मां लक्ष्मी की कृपा घर पर पूरे साल बनी रहती है।
ऐसे में अगर दिवाली के दिन लक्ष्मी माता की आरती की जाती है तो यह इस बात का प्रतीक है कि मां लक्ष्मी की घर से विदाई हो गई है।