श्री बगलामुखी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र

श्री बगलामुखी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र



ब्रह्मास्त्ररुपिणी देवी माता श्रीबगलामुखी ।
चिच्छिक्तिर्ज्ञान-रुपा च ब्रह्मानन्द-प्रदायिनी ।। १ ।।

ॐ आप ब्रह्मास्त्र के समान शक्तिशाली, देवी माता श्री
 बगलामुखी हैं जो चिच्छक्ति (चेतना शक्ति) और ज्ञान
 का रूप हैं जिनके आशीर्वाद से भक्तों को आध्यात्मिक
 ज्ञान प्राप्त होता है। आप ब्रह्मानंद (अलौकिक आनंद)
 प्रदान करती हैं जिनके आशीर्वाद से आत्मिक शांति 
और आनंद की अनुभूति होती है।

महाविद्या महालक्ष्मी श्रीमत्त्रिपुरसुन्दरी ।
भुवनेशी जगन्माता पार्वती सर्वमंगला ।। २ ।।

आप ही महाविद्या (दिव्य ज्ञान और शक्ति के उच्चतम
 स्वरूप), महालक्ष्मी (धन, समृद्धि, और कल्याण की
 देवी) और श्रीमत त्रिपुर्सुंदरी (सौंदर्य, ज्ञान, और पूर्णता
 की प्रतीक) हैं, भुवनेशी, जगत की माता हैं, पार्वती -
 सभी के लिए शुभ और मंगलकारी हैं।

ललिता भैरवी शान्ता अन्नपूर्णा कुलेश्वरी ।
वाराही छीन्नमस्ता च तारा काली सरस्वती ।। ३।।

ललिता (अन्तर्मुखी रूप), भैरवी (क्रोध स्वरूपता), शांता
 (शांति स्वरूपता), अन्नपूर्णा (अन्न की देवी), कुलेश्वरी
 (कुल और परिवार की प्रभुता), वाराही (भगवान विष्णु
 की अवतारिणी), छिन्नमस्ता (भयानक रूप जो प्रत्येक
 समय प्रत्येक में अपने भक्तों के शत्रुओं को नष्ट करती
 हैं।), तारा (संग्रह, शक्ति, और शांति की देवी), काली
 (समय/काल की देवी), और सरस्वती (विद्या, कला,
 और संवेदनशीलता की देवी) आप ही हैं।

जगत्पूज्या महामाया कामेशी भगमालिनी ।
दक्षपुत्री शिवांकस्था शिवरुपा शिवप्रिया ।। ४ ।।

पूर्ण जगत द्वारा पूजे जानी वाली, महामाया, कामेशी
 (इच्छाओं और कामनाओं की अधिपति), भगमालिनी
 (समस्त सृष्टि की नियंत्रण करने वाली और सभी प्रकार
 के भोगों की देवी), दक्ष की पुत्री (देवी सती), शिवांकस्था
 (शिव की अर्धांगिनी), आप शिव का रूप हैं (शिव की
 आध्यात्मिक और दिव्य शक्ति ), शिव प्रिया हैं।

सर्व-सम्पत्करी देवी सर्वलोक वशंकरी ।
वेदविद्या महापूज्या भक्ताद्वेषी भयंकरी ।। ५ ।।

सभी को ऐश्वर्य, समृद्धियाँ देने वाली, सभी लोकों को 
वश में करने वाली, आप वेदों और विद्या की महान
 पूज्यनीय हैं (ज्ञान की देवी), और अपने भक्तों से द्वेष
 करने वालों (दुष्टों) के लिए भयंकर रूप धारण करती हैं।

स्तम्भ-रुपा स्तम्भिनी च दुष्टस्तम्भनकारिणी ।
भक्तप्रिया महाभोगा श्रीविद्या ललिताम्बिका ।। ६।।

आप स्तंभरूपा (स्थिरता और अचलता का प्रतीक) हैं 
जो संकट के समय में अपने भक्तों को दृढ़ता प्रदान 
करती हैं। आप स्तंभित करने की शक्ति हैं जो दुष्टों की
 नकारात्मक शक्तियों और क्रियाओं को रोकने में सक्षम
 है। आप दुष्टों को स्तंभित करने की कारक हैं, भक्तों की
 प्रिय हैं, महा सुख प्रदान करती हैं, आप ही श्रीविद्या
 लक्ष्मी हैं और ललिताम्बिका हैं जो सौंदर्य, समृद्धि, 
और दिव्य ज्ञान की देवी हैं।

मैनापुत्री शिवानन्दा मातंगी भुवनेश्वरी ।
नारसिंही नरेन्द्रा च नृपाराध्या नरोत्तमा ।। ७ ।।

मैना की पुत्री (देवी पार्वती) हैं, शिवानंद (शिव की
 आराध्या और जीवन संगिनी) हैं, मातंगी (ज्ञान, संगीत,
 और वाक् शक्ति की देवी), भुवनेश्वरी (संपूर्ण ब्रह्मांड 
और सृष्टि की अधिष्ठात्री देवी) हैं, नारसिंही (भगवान
 नृसिंह की शक्ति) और नरेंद्रा (दिव्य संरक्षण और 
शासन) हैं। आप नृपराध्या (राजाओं द्वारा पूजनीय),
 ‘नरोत्तमा’ (उत्कृष्ट मानवों में श्रेष्ठ, जो उनके दिव्य गुणों
 और आध्यात्मिक उत्कर्ष को संदर्भित करता है।) हैं।

नागिनी नागपुत्री च नगराजसुता उमा ।
पीताम्बा पीतपुष्पा च पीतवस्त्रप्रिया शुभा ।। ८ ।।

आप नागिनी नाग की पुत्री हैं, नगराज (पर्वतराज
 हिमालय)) की पुत्री हैं जिनका नाम उमा है। आपको
 पीले रंग के वस्त्र प्रिय हैं, आप को पीले पुष्प प्रिय हैं,
 आप शुभता और कल्याणकारी हैं।

पीतगन्धप्रिया रामा पीतरत्नार्चिता शिवा ।
अर्द्धचन्द्रधरी देवी गदामुद्गरधारिणी ।। ९ ।।

आपको पीला चंदन प्रिय है, रामा (धर्म का पालन करने
 वाली) है, आप ही शिवा हैं जिन्हें पीले रत्न अर्चित किए
 जाते हैं। आप देवी ने अर्ध-चन्द्र (मुख) धारण किया है
 जो सौंदर्यपूर्ण और शान्त है, आपने गदा और मुद्गर
 धारण किया है।

सावित्री त्रिपदा शुद्धा सद्योराग विवर्धिनी ।
विष्णुरुपा जगन्मोहा ब्रह्मरुपा हरिप्रिया ।। १० ।।

आप ही सावित्री हैं, त्रिपदा (गायत्री) हैं - जिनके तीन
 चरणों में सत्, रज, तम व्याप्त है, आप परम पवित्र हैं,
 आप सद्यों में ही रोगों को नष्ट करने वाली हैं और 
विवर्धन के साधने की देवी हैं।। आप ही विष्णु का 
रूप हैं जो जगत को मोह लेता हैं, आप ही ब्रह्म रूप हैं,
 हरि (सृष्टि के पालनकर्ता और जीवन के संरक्षक) को
 प्रिया हैं।

रुद्ररुपा रुद्रशक्तिश्चिन्मयी भक्तवत्सला ।
लोकमाता शिवा सन्ध्या शिवपूजनतत्परा ।। ११ ।।

आप रुद्र का रूप हैं, आप ही रुद्र की चेतना और ज्ञान
 की शक्ति हैं, भक्तों को वात्सल्य देती हैं, समस्त लोक 
की माता हैं, संध्या काल की देवी हैं, जो भगवान शिव 
की पूजा के लिए सदैव तत्पर रहती हैं।

धनाध्यक्षा धनेशी च नर्मदा धनदा धना ।
चण्डदर्पहरी देवी शुम्भासुरनिबर्हिणी ।। १२ ।।

आप धन की अध्यक्षा देवी हैं, धन की देवी लक्ष्मी हैं,
 धर्म और धन की दाता हैं, धन स्वयं आपका ही रूप है,
 आप ही चण्ड दर्प (घमंड) को हरने वाली देवी हैं,
 शुम्भासुर राक्षस का विनाश करने वाली देवी हैं।

राजराजेश्वरी देवी महिषासुरमर्दिनी ।
मधूकैटभहन्त्री देवी रक्तबीजविनाशिनी ।। १३ ।।

आप राजराजेश्वरी हैं, आपने ही महिषासुर का संहार
 किया है, आपने मधु और कैटभ राक्षसों का संहार 
किया है। आपने ही रक्तबीज राक्षस का विनाश 
किया है।

धूम्राक्षदैत्यहन्त्री च भण्डासुर विनाशिनी ।
रेणुपुत्री महामाया भ्रामरी भ्रमराम्बिका ।। १४ ।।

आपने ही धूम्राक्क्ष नामक दैत्य का अंत किया है, और
 भण्डासुर का विनाश किया है। आप रेणु की पुत्री हैं,
 महामाया हैं। अपने ही भ्रामरी, भ्रमरांबिका का रूप
 लिया है (जिससे आपने अरुणासुर का नाश किया था।)

ज्वालामुखी भद्रकाली बगला शत्रुनाशिनी ।
इन्द्राणी इन्द्रपूज्या च गुहमाता गुणेश्वरी ।। १५ ।।

आप ही ज्वालामुखी, भद्रकाली (विनाशकारी शक्तियाँ),
 और बगला हैं जो शत्रुओं का नाश करती हैं। आप ही
 इंद्राणी हैं जिनकी पूआ इंद्र करते हैं, आप ही गुहमाता हैं,
 सर्वोच्च गुणों वाली गुणेश्वरी हैं।

वज्रपाशधरा देवी ज्ह्वामुद्गरधारिणी ।
भक्तानन्दकरी देवी बगला परमेश्वरी ।। १६ ।।

आपने वज्र और पाश (फंदा) धारण कर रखा है, जिह्वा
 से मुद्गर (हथौड़ा) धारण करने वाली है। आप भक्तों को
 आनंद प्रदान करती हैं, आप बगला माता हैं, परमेश्वरी
 देवी हैं।

अष्टोत्तरशतं नाम्नां बगलायास्तु यः पठेत् ।
रिपुबाधाविनिर्मुक्तः लक्ष्मीस्थैर्यमवाप्नुयात् ।। १७ ।।

अष्टोत्तरशतं नाम्नां शब्द का अर्थ है “108 नाम।”
 अष्टोत्तरशत शब्द ‘अष्ट’ (आठ) + ‘उत्तर’ (बाद में) +
 ‘शत’ (सौ) से बना है, जो मिलकर 108 बनता है। ‘रिपु’
 का अर्थ है ‘शत्रु’ और ‘बाधा’ का अर्थ है ‘बाधा’।
 ‘विनिर्मुक्तः’ का अर्थ है ‘मुक्त हो जाना’। 
इसलिए, यह भाग बताता है कि जो साधक बगलामुखी
 के 108 नामों का पाठ करता है, वह शत्रुओं की बाधाओं
 से मुक्त हो जाता है। ‘लक्ष्मी’ का अर्थ है ‘धन और
 समृद्धि’, और ‘स्थैर्य’ का अर्थ है ‘स्थायित्व’। ‘अवाप्नुयात्’
 का अर्थ है ‘प्राप्त करना’। इस प्रकार, यह भाग बताता है
 कि साधक को स्थायी धन और समृद्धि प्राप्त होती है।

भूतप्रेतपिशाचाश्च ग्रहपीड़ानिवारणम् ।
राजानो वशमायांति सर्वैश्वर्यं च विन्दति ।। १८ ।।

इस पाठ से भूत, प्रेत, पिशाच और ग्रहों की पीड़ा से रक्षा
 होती है, यानी नकारात्मक ऊर्जा और ग्रहों के दुष्प्रभावों
 से मुक्ति मिलती है। पाठ करने वाला राजाओं या उच्च
 अधिकारियों को अपने वश में कर लेता है और सभी
 प्रकार की ऐश्वर्य (समृद्धि) प्राप्त करता है।

नानाविद्यां च लभते राज्यं प्राप्नोति निश्चितम् ।
भुक्तिमुक्तिमवाप्नोति साक्षात् शिवसमो भवेत् ।। १९ ।।

इससे विभिन्न प्रकार की विद्याएँ प्राप्त होती हैं और
 राज्य (शासन या महत्वपूर्ण पद) की प्राप्ति निश्चित 
होती है। पाठ करने वाला भौतिक सुखों का भोग और
 मोक्ष (आत्मिक मुक्ति) दोनों प्राप्त करता है, और
 भगवान शिव के समान बन जाता है।

।। इति श्री रुद्रयामले सर्व-सिद्धि-प्रद बगलाऽष्टोत्तर-शतनाम-स्तोत्र ।।
GURUDEV SANTOSH TRIPATHI

आम इंसान की समस्‍याओं और चिंताओं की नब्‍ज पकड़कर बाजार में बैठे फर्जी बाबा और ढोंगी लोग ज्‍योतिष के नाम पर ठगी के लिए इस प्रकार के दावे करते हैं। ज्‍योतिष विषय अपने स्‍तर पर ऐसा कोई दावा नहीं करता।

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