यह परम शक्ति है, सृष्टि का आदि और अंत इन्हीं में निहित है,प्रत्येक युग में अवतरित महापुरुषों ने मां दुर्गा की स्तुति संपन्न की परशुराम ने भी दुर्गा स्तुति की है दत्तात्रेय ने भी मातृ उपासना की है कृष्ण, शिव, गणेश, राम से लेकर सभी के मुख से दुर्गा स्तुति प्रस्फुटित हुई है । प्रत्येक देव मनुष्य एवं जीव के अंदर मातेश्वरी अंश रूप में विराज मान है, दुर्गा तंत्र अपने आप में विराट है अनेक पद्धतियों से अनंत काल से दुर्गा उपासना संपन्न की जा रही है । मार्कंडेय ऋषि द्वारा रचित दुर्गा सप्तशती एक प्रमाणिक और अद्भुत ग्रंथ है, दुर्गा उपासना आत्म अनुशासन पवित्रता और शक्ति संचय करने का सर्वश्रेष्ठ विधान है,प्रत्येक साधक को प्रारंभिक गुरु दीक्षा के साथ नवार्ण मंत्र या गायत्री मंत्र अवश्य ही प्राप्त करना ही चाहिए ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोस्तुते॥
मंत्र का अर्थ:
हे नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हो। कल्याण दायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को सिद्ध करने वाली, शरणागत वत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो। हे मां तुम्हें हमारा नमस्कार है।
इस मंत्र के अर्थ के माध्यम से आपको माता के बारे में उनके महत्व को समझ सकते है ।
एक वर्ष में कुल चार नवरात्रि मनाई जाती है। चैत्र नवरात्रि, आषाढ़ नवरात्रि, आश्विन नवरात्रि और माघ नवरात्रि। ये सभी नवरात्र प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर नवमी तिथि तक चलती हैं। इन चारों नवरात्रों को चार ऋतुओं के आगमन के रूप में भी देखा जाता है। जहां, चैत्र नवरात्र के साथ ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत होती है। वहीं, आषाढ़ नवरात्र के साथ वर्षा ऋतु, आश्विन नवरात्र के साथ शरद ऋतु, और माघ नवरात्र के साथ वसंत ऋतु की शुरुआत मानी जाती है।
नवरात्रि पर्व माँ आदिशक्ति भगवती को समर्पित है। हर नवरात्र के यह नौ दिन और रातें माता के भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। इन नौ रात्रिओं का सम्बन्ध सिद्धि से होता है। इसीलिए माता की आराधना की यह नौ रातें आपके कई कार्यों को सरलता से सिद्ध कर सकती हैं।माता के साधक वर्ष की चारों नवरात्रि को बहुत श्रद्धा के साथ मनाते हैं
पुराणों में उल्लेखित कथा के अनुसार माँ दुर्गा ने इन्हीं नौ दिनों में महाराक्षस महिषासुर से युद्ध किया था, जो माता के रूप पर मोहित होकर उनसे विवाह करना चाहता था। उस समय माँ आदिशक्ति ने यह शर्त रखी कि महिषासुर और माता के बीच एक युद्ध होगा और अगर इस युद्ध में वह विजयी होता है तो वे उससे विवाह करेंगी। महिषासुर और माँ दुर्गा के बीच यह युद्ध नौ दिनों तक चला और नवमी के दिन माता ने महिषासुर का वध करके देवताओं को उसके अत्याचार से मुक्ति दिलाई थी।
इसीलिए यह नवरात्र बुरी शक्तियों की पराजय का भी पर्व भी माना है। माता के साधक भी इस समय अपनी सभी तामसिक प्रवृत्तियों को छोड़कर सिर्फ माता की भक्ति में लीन रहते हैं।
गुप्त नवरात्रि -
इन चारों में से हम आषाढ़ और माघ नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि के नाम से जानते हैं और इसका कारण है कि गुप्त नवरात्रि में साधक गुप्त तंत्र विद्याओं की साधना करते हैं, इसीलिए इन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। अघोरी और तंत्र साधना करने वाले साधु इस समय माता आदिशक्ति की कठिन उपासना में भाग लेते हैं।
चैत्र नवरात्रि -
चैत्र नवरात्र चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर नवमी तिथि तक मनाया जाता है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार यह वर्ष की पहली नवरात्रि होती है। इसे शाकम्भरी नवरात्र के नाम से भी जाना जाता है। इसमें माँ महाकाली की विशेष पूजा का विधान है। इन नौ दिनों के दौरान व्रत और पूजन पूर्ण विधि-विधान के साथ किया जाता है।
नवरात्रि के समय हमारे आसपास वातावरण में बहुत सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है, क्योंकि इस समय स्वयं माता जगदम्बा अपने भक्तों के बीच वास करती है। और इस समय सच्चे मन से पूर्ण विधि के अनुसार की गई पूजा से आपको माँ जगदंबा का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
इस शुभ पर्व के दौरान आप किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत कर सकते हैं। नवरात्रि की पूजा करने का लाभ सिर्फ आपको ही नहीं, बल्कि आपके पूरे कुटुंब को प्राप्त होगा, और माता की साधना से आप असंभव कार्य को भी सिद्ध करने में सक्षम होंगे। शारदीय नवरात्रि की पूजा करने से आपको अपने सभी जन्मों के पापों से भी मुक्ति मिलती है, और मृत्यु के बाद आपको मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कैसे करें घटस्थापना
वास्तव में जो घट या कलश है, उसमें सभी देवी- देवताओं का आवाहन किया जाता है। इसे 33 कोटियों के देवी-देवताओं का निवास स्थान भी माना गया है। देवी-देवताओं के अतिरिक्त कलश में चारों वेदों और पवित्र नदियों का भी आवाहन किया जाता है। शास्त्रों में, कलश के मुख पर भगवान विष्णु, कंठ पर भगवान शंकर और जड़ यानी कलश के निचले स्थान में ब्रह्मा जी का स्थान बताया गया है। साथ ही कलश के ऊपर जो नारियल रखा जाता है, वह देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है।
अगर बात करें घटस्थापना में जौ के पात्र की तो जौ का भी अपना धार्मिक महत्व है, हिंदू धर्म में इसे धरती पर उपजने वाली पहली फसल माना गया है। मान्यता है कि यह फसल देवी जी के द्वारा ही धरती पर प्रकट हुई थी इसलिए देवी जी के साथ जौ बो कर उसकी भी पूजा की जाती है। पूजन स्थल पर इसको स्थापित करने से आपको और आपके पूरे परिवार को सभी देवी-देवताओं का आशीष मिलता है और घर में सुख समृद्धि का वास होता है। इसलिए घटस्थापना को बेहद शुभ एवं लाभदायक माना गया है।
घटस्थापना की पूजा सामग्री (Ghatasthapana Puja Samagri)
मिट्टी का बड़ा कटोरा, छानी हुई उपजाऊ मिट्टी, जौं के दानें, तांबे, मिट्टी या पीतल का कलश, जटा वाला नारियल, लाल चुनरी, मौली, आम के पत्ते या अशोक के पत्ते, रोली, पुष्प, अक्षत से भरा एक पात्र, यज्ञोपवित या जनैऊ, फल, मेवे।
कलश में डालने की सामग्री-
कलश के अंदर डालने के लिए आपको अक्षत, हल्दी , कुमकुम, गंगाजल, शुद्धजल, सिक्का, दूर्वा, सुपारी, हल्दी की गांठ, मीठा बताशा या मिश्री की आवश्यकता होगी।
घटस्थापना की विधि-
- नवरात्रि के प्रथम दिन स्नानादि से निवृत्त होकर साफ वस्त्र धारण कर लें।
- इसके पश्चात् पूजा स्थल पर गंगाजल छिड़क कर शुद्धिकरण कर लें।
- अब पूजा स्थल पर चौकी लगाएं और उसपर लाल कपड़ा बिछाएं, चौकी को ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व दिशा में स्थापित करें। यह ध्यान रखें कि पूजा करने वाले व्यक्ति का मुख पूर्व दिशा में हो।
- चौकी पर माता की प्रतिमा या फिर चित्र को स्थापित कर लें। आप माता की प्रतिमा को स्थापित करने से पहले उन्हें गंगाजल से स्नान भी करवा सकते हैं और उनका श्रृंगार करने के बाद उन्हें चौकी पर विराजमान कर सकते हैं।
- अब चौकी पर माता की प्रतिमा के बाएं ओर अक्षत से अष्टदल बनाएं। अष्टदल बनाने के लिए कुछ अक्षत रखें और उसके बीच से शुरू करते हुए, बाहर की तरफ 9 कोने बनाएं। इसके ऊपर ही घट स्थापना की जाएगी।
- अब आपको आचमन करना है, उसके लिए आप बाएं हाथ में जल लें, और दायं हाथ में डालें, इस प्रकार दोनों हाथों को शुद्ध करें। फिर आचमन मंत्र यानी, “ॐ केशवाय नम: ॐ नाराणाय नम: ॐ माधवाय नम: ॐ ह्रषीकेशाय नम:”का उच्चारण करते हुए तीन बार जल ग्रहण करें, इसके बाद पुनः हाथ धो लें।
- घट स्थापना से पहले सभी पूजन सामग्री को एकत्रित कर लें और उसके ऊपर गंगाजल का छिड़काव करें। इस प्रकार सामग्री का शुद्धिकरण हो जाएगा।
- अब आप एक मिट्टी का बड़ा कटोरा लें, जिसमें मिट्टी डालकर जौ बो दें। इस पात्र को चौकी पर बनाएं गए अष्टदल पर रख दें।
- इसके अलवा आप एक मिट्टी, तांबे या पीतल का कलश लें, जिसपर रोली से स्वास्तिक बनाएं।
- कलश के मुख पर मौली बांधे।
- इस कलश में गंगा जल, व शुद्ध जल डालें।
- जल में हल्दी की गांठ, दूर्वा, पुष्प, सिक्का, सुपारी, लौंग इलायची, अक्षत, रोली और मीठे में बताशा भी डालें, ऐसा करते समय आप इस मंत्र का उच्चारण करें-
“कलशस्य मुखे विष्णु कंठे रुद्र समाश्रिता: मूलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृता:। कुक्षौतु सागरा सर्वे सप्तद्विपा वसुंधरा, ऋग्वेदो यजुर्वेदो सामवेदो अथर्वणा: अङेश्च सहितासर्वे कलशन्तु समाश्रिता:।”
- अब कलश के मुख को 5 आम के पत्तों से ढक देंगे और आम के पत्तों पर भी हल्दी, कुमकुम का तिलक अवश्य लगाएं।
- इन आम के पत्तों पर एक पात्र में अक्षत डाल कर रख दें।
- अब एक जटा वाला नारियल लें और उसपर चुनरी लपेट दें और मौली बांध दें।
- इस नारियल को कलश के ऊपर चावल वाले पात्र में रख दें।
- अंत में इस कलश को जिस मिट्टी के पात्र में जौ बोए थे, उसके ऊपर रख दें।
- घटस्थापना के बाद आप माता की प्रतिमा के दाएं तरफ अखंड दीपक रखें और उसे प्रज्वलित करें।
- अखंड दीप प्रज्वलित करने से संबंधित संपूर्ण जानकारी ऐप पर उपलब्ध है, आप उसे ज़रूर देखें।
- घटस्थापना के बाद, इसकी पूजा भी की जाती है। आप घट के समक्ष धूप, दीप अवश्य दिखाएं और भोग में मेवे व फल अर्पित करें।
माँ दुर्गा के 9 रूप
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।
- शैलपुत्री
- ब्रह्मचारिणी
- चन्द्रघंटा
- कूष्माण्डा
- स्कंदमाता
- कात्यायनी
- कालरात्रि
- महागौरी
- सिद्धिदात्री
देवी माँ या निर्मल चेतना स्वयं को सभी रूपों में प्रत्यक्ष करती हैं, और सभी नाम ग्रहण करती हैं।
माँ दुर्गा के नौ रूप और हर नाम में एक दैवीय शक्ति को पहचानना ही नवरात्रि मनाना है।
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
1. शैलपुत्री (Shailaputri in Hindi)
‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:’ मन्त्र के जप से आप माँ दुर्गा के पहले स्वरुप माँ शैलपुत्री की आराधना कर सकते हैं।
नवरात्रि की प्रतिपदा को पहनें सफेद रंग के कपड़े।
प्रतिपदा: नवरात्रि के नौ रंग देवी के विशिष्ट गुणों का प्रतीक है।
पहले दिन की पूजन सामग्री में सफ़ेद रंग के पुष्प, सफ़ेद रंग की मिठाई,
2. ब्रह्मचारिणी (Brahmacharini in Hindi)
माँ दुर्गा के दूसरे रूप का नाम है माँ ब्रह्मचारिणी।
दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से साधकों को सभी तामसिक विचारों से मुक्ति मिलती है। इस दिन माता के इस स्वरूप की आराधना करने से मानव शरीर में कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है, जिससे उनका जीवन सफल होता है, और वे किसी भी प्रकार की बाधा का सामना आसानी से कर पाते हैं।
दुर्गा जी की नौ शक्तियों में दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। नवरात्रि में दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। ब्रह्मचारिणी नाम में ‘ब्रह्म’ शब्द का अर्थ तपस्या है। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी अर्थात तप का आचरण करने वाली। कहा भी है- वेदस्तत्त्वं तपो ब्रह्म-वेद, तत्त्व और तप ‘ब्रा’ शब्द के अर्थ हैं। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप अत्यन्त भव्य एवं पूर्ण ज्योतिर्मय है। देवी ब्रह्मचारिणी के बायें हाथ में कमण्डल और दाहिने हाथ में तपस्या के लिए माला है। अपने पूर्व जन्म में जब ये हिमालय राज के घर पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई थी तब नारद जी द्वारा दिये उपदेश से इन्होंने भगवान् शंकर जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिये अत्यन्त कठोर तपस्या की। इसी कठोर तपस्या के कारण इन्हें ब्रह्मचारिणी नाम से जाना गया।
मॉ एक हजार साल केवल फल-मूल खाकर तपस्या की थी। फिर सौ सालों तक केवल शाक खाकर जीवन यापन किया। बहुत दिनों तक कठोर उपवास करते हुए खुले आकाश के नीचे बारिस और धूप में भयंकर कष्ट सह किये इतनी कठोर तपस्या करने के बाद तीन हजार सालों तक मॉ ने केवल पेडो से धरती पर टूटकर गिरे हुए बेलपत्रों को खाकर वह भगवान् शंकर की पूजा अर्चना करती रहीं। फिर कुछ समय के पश्चात उन्होंने पेड से गिरे सूखे बेलपत्रों को भी खाना बन्द कर दिया। इस प्रकार हजारों सालो तक उन्होने बिना कुछ खाये और बिना कुछ पिये कठोर तपस्या करती रहीं। पत्तों को भी खाना छोड़ देने के कारण उनका एक नाम ‘अपर्णा’ भी पड़ गया।
इस प्रकार हजारो से कठोर तपस्या करने के कारण देवी ब्रह्मचारिणी के पूर्व जन्म का शरीर दूबला पतला और एकदम क्षीण हो गया। उनकी यह निर्बल दशा देखकर उनकी माता मैना को बहुत दुख हुआ। माता मैना ने उनकी इस कठोर तपस्या से बाहर निकालने के लिए उन्हे आवाज दी ‘उमा’, अरे! नहीं, ओ! नहीं!’ तभी से ब्रह्मचारिणी देवी को ‘उमा’ नाम से जाना गया।
देवी को इस तरह कठोर तपस्या करते देख तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। देवता, ऋषि, मुनि और पुण्य आत्माये सभी देवी ब्रह्मचारिणी की तपस्या की प्रशंसा करने लगे कि ऐसी तपस्या करना बहुत ही पुण्य कर्म है और आज से पहले किसी ने भी इतनी कठोर तपस्या नही की है। और अन्त में ब्रह्मा जी ने आकाश में प्रकट होकर देवी ब्रह्मचारिणी से बहुत प्रसन्न होकर कहा कि ‘हे देवि! आज तक किसी ने भी इतनी कठोर तपस्या नहीं की है। इतनी कठोर तपस्या करना तो केवल तुम्हीं से सम्भव है। देवी तुम्हारे इस परम पवित्र और अलौकिक कार्य की चर्चा चोरों दिशाओ मे हो रही है। तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी। भगवान् शंकर से ही तुम्हारा विवाह होगा और वही तुम्हें पति रूप प्राप्त होंगे। अब तुम तपस्या को खत्म कर अपने घर लौट जाओ। बहुत जल्द तुम्हारे पिता तुम्हें बापस घर ले जाने आ रहे हैं।
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा में कौन से मन्त्र का जाप करें?
‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:’ मन्त्र के जप से आप माँ दुर्गा के दूसरे स्वरुप माँ ब्रह्मचारिणी का आवाहन कर सकते हैं ।
नवरात्रि की द्वितीया को पहनें लाल रंग के कपड़े।
द्वितीया लाल रंग, क्रिया और शक्ति का प्रतीक है। यह देवी के उग्र रूप का प्रतीक है।
3. चन्द्रघंटा (Chandraghanta in Hindi)
देवी माँ के तृतीय ईश्वरीय स्वरुप का नाम माँ चन्द्रघण्टा है।
चन्द्रघण्टा शब्द का क्या अर्थ है?
चन्द्रमा हमारे मन का प्रतीक है। मन का अपना ही उतार चढ़ाव लगा रहता है। प्राय: हम अपने मन से ही उलझते रहते हैं – सभी नकारात्मक विचार हमारे मन में आते हैं, ईर्ष्या आती है, घृणा आती है और आप उनसे छुटकारा पाने के लिए और अपने मन को स्वच्छ करने के लिए संघर्ष करते हैं। माता दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का अवतार तब लिया था जब दैत्यों का आतंक बढ़ने लगा था। उस समय महिषासुर का भयंकर युद्ध देवताओं से चल रहा था। महिषासुर देवराज इंद्र का सिंहासन प्राप्त करना चाहता था। वह स्वर्ग लोक पर राज करने की इच्छा पूरी करने के लिए यह युद्ध कर रहा था। जब देवताओं को उसकी इस इच्छा का पता चला तो वे परेशान हो गए और भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के सामने पहुंचे। ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने देवताओं की बात सुन क्रोध प्रकट किया और क्रोध आने पर उन तीनों के मुख से ऊर्जा निकली। यह ऊर्जा दसों दिशाओं में व्याप्त होने लगी। तभी वहां एक कन्या उत्पन्न हुई। तब शंकर भगवान ने देवी को अपना त्रिशूल भेंट किया। भगवान विष्णु ने भी उनको चक्र प्रदान किया। इसी तरह से सभी देवता ने माता को अस्त्र-शस्त्र देकर सजा दिया। इंद्र ने भी अपना वज्र एवं ऐरावत हाथी माता को भेंट किया। सूर्य ने अपना तेज, तलवार और सवारी के लिए शेर प्रदान किया। तब देवी सभी शास्त्रों को लेकर महिषासुर से युद्ध करने के लिए युद्ध भूमि में आ गई। उनका यह विशाल का रूप देखकर महिषासुर भय से कांप उठा। तब महिषासुर ने अपनी सेना को मां चंद्रघंटा के पर हमला करने को कहा। तब देवी ने अपने अस्त्र-शस्त्र से असुरों की सेनाओं को भर में नष्ट कर दिया। इस तरह से मां चंद्रघंटा ने असुरों का वध करके देवताओं को अभयदान देते हुए अंतर्ध्यान हो गई।
माँ चंद्रघंटा की पूजा में कौन से मन्त्र का जाप करें?
‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्रघंटायै नम:’ मन्त्र के जप से आप माँ दुर्गा के तीसरे स्वरुप माँ चंद्रघंटा का आवाहन कर सकते हैं ।
नवरात्रि की तृतीया को पहनें शाही नीले रंग के कपड़े।
तृतीया: रॉयल ब्लू शांति और गहरे नीले आकाश की गहराई का प्रतीक है। यह देवी के पास ज्ञान की गहराई का प्रतिनिधित्व है।
4. कूष्माण्डा (Kushmanda in Hindi)
देवी माँ के चतुर्थ रूप का नाम है, देवी कूष्माण्डा।देवी कूष्माण्डा सिंह पर सवार रहती हैं और उनकी आठ भुजाएं हैं, इसीलिए उन्हें दुर्गा का अष्टभुजा अवतार भी कहा जाता है। माता के शरीर की कांति और ऊर्जा सूर्य के समान हैं, क्योंकि केवल माता कूष्माण्डा के पास ही वो शक्ति है, जिससे वे सूर्य के केंद्र में निवास कर सकती हैं।अपनी मनमोहक मुस्कान से इस ब्रह्मांड का निर्माण करने के कारण इन्हें देवी कूष्माण्डा के नाम से विख्यात किया गया। जिस समय सृष्टि का निर्माण नहीं हुआ था तथा चारों ओर अंधकार का वास था तब देवी कूष्माण्डा ने ही अपने ईशत हास्य के माध्यम से ब्रह्मांड की सरंचना की। उनकी इस अद्भुत लीला की वजह से उन्हें सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति का नाम दिया गया। देवी कुष्मांडा की अष्ट भुजाएं हैं इसलिए उन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है। देवी कूष्माण्डा अथवा अष्टभुजा के हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृत पूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। इसके साथ ही देवी कूष्माण्डा के आठवें हाथ में सिद्धियों तथा निधियों को प्रदान करने वाली जप माला धारण हैं। देवी कूष्माण्डा का प्रिय वाहन सिंह है। देवी कूष्माण्डा को कुम्हड़े की बलि अत्यंत प्रिय है। संस्कृत भाषा में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं। इस कारण भी देवी को कूष्माण्डा कहते हैं। देवी कूष्माण्डा का सूर्यमंडल के अंदर लोक में निवास करती हैं। सूर्यमंडल में निवास करने की शक्ति मात्र इन्हीं देवी के पास है। इनका तेज़ सर्वव्यापी है। जगत का हर प्राणी, मनुष्य इन्हीं के तेज़ से उज्ज्वल है। इनकी कांति, ओज तथा दिव्य स्वरूप सर्व लोक में उजागर है। ब्रह्मांड का कण – कण देवी कूष्माण्डा की शक्ति का प्रतीक है। देवी कुष्मांडा की सच्चे मन से पूजा करने वाले भक्तों को शक्ति, तेज़ प्राप्त होता है। यह देवी भक्ति तथा सेवा से प्रसन्न होकर आशीर्वाद तथा मनोकामना को सिद्ध करती हैं।
माँ कूष्मांडा की पूजा में कौन से मन्त्र का जाप करें?
‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडायै नम:’ के जप से आप माँ दुर्गा के चौथे स्वरुप माँ कूष्मांडा की आराधना कर सकते हैं।
नवरात्रि की चतुर्थी को पहनें पीले रंग के कपड़े।
चतुर्थी: पीला रंग खुशी और जयकार का रंग है, जो कि देवी के प्रतीक हैं।
5. स्कंदमाता (Skandamata in Hindi)
बुद्धिमता, ज्ञान की देवी: माँ स्कंदमाता
देवी माँ का पाँचवां रूप स्कंदमाता के नाम से प्रचलित है। भगवान कार्तिकेय का एक नाम स्कन्द भी है जो ज्ञानशक्ति और कर्मशक्ति के एक साथ सूचक हैं। स्कन्द इन्हीं दोनों के मिश्रण का परिणाम है। स्कन्दमाता वह दैवीय शक्ति हैं, जो व्यवहारिक ज्ञान को सामने लाती हैं – वह जो ज्ञान को कर्म में बदलती हैं।
शिव तत्व आनंदमय, सदैव शांत और किसी भी प्रकार के कर्म से परे का सूचक है। देवी तत्व आदिशक्ति सब प्रकार के कर्म के लिए उत्तरदायी है। ऐसी मान्यता है कि देवी इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति का समागम है। जब शिव तत्व का मिलन इन त्रिशक्ति के साथ होता है तो स्कन्द का जन्म होता है। स्कंदमाता ज्ञान और क्रिया के स्रोत, आरम्भ का प्रतीक है। इसे हम क्रियात्मक ज्ञान अथवा सही ज्ञान से प्रेरित क्रिया या कर्म भी कह सकते हैं।
माँ स्कंदमाता की पूजा करने से साधकों को भगवान कार्तिकेय के समान तेजस्वी संतान प्राप्त होती है। माँ स्कंदमाता बहुत करुणामयी हैं, और वे अपने भक्तों से हुई हर त्रुटि के लिए उन्हें क्षमादान देती हैं। माँ की पूजा करने से भगवान कार्तिकेय का आशीर्वाद स्वतः ही साधकों को मिल जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर ने कठोर तपस्या करके ब्रह्माजी को प्रसन कर दिया था। तब ब्रह्माजी प्रसन्न होकर उस राक्षस को साक्षात दर्शन दिए। ब्रह्माजी को देखकर तारकासुर ने भगवान से अमर रहने का वरदान मांगा। ब्रह्माजी ने उसके इस वर को सुनकर उनसे कहा हे पुत्र जो इस धरती पर जन्म लिया उसका मरना निश्चय है। तब तारकासुर ब्रह्माजी का यह वचन सुनकर निराश होकर फिर से ब्रह्मा जी से कहा कि हे प्रभु कुछ ऐसा करेगी कि मैं शिवजी के पुत्र के हाथों मरू। उसके मन में यह था कि भगवान शिव की विवाह तो होगी नहीं और उनका कोई पुत्र नहीं होगा। इस वजह से उसकी मृत्यु भी नहीं हो सकेगी। तब ब्रह्मा जी तथास्तु कह कर वहां से अंतर्ध्यान हो गए। फिर तो तारकासुर ने अपने अत्याचार से पूरे पृथ्वी और स्वर्ग को त्रस्त कर दिया। हर कोई उसके अत्याचारों से परेशान हो चुका था। तब भगवान परेशान होकर शिव जी के पास गए। उन्होंने हाथ जोड़ते हुए शिवजी से तारकासुर से मुक्ति दिलाने को कहा। तब भगवान शिव ने पार्वती से विवाह किया और कार्तिक के पिता बनें। बाद में भगवान कार्तिकेय बड़े होकर तारकासुर का वध किये। आपको बता दें स्कंदमाता कार्तिकी ही माता है।
स्कंदमाता की पूजा में कौन से मन्त्र का जप करें?
‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमतायै नम:’ के जप से आप माँ दुर्गा के पाँचवें स्वरुप माँ स्कंदमाता का आवाहन कर सकते हैं ।
नवरात्रि की पंचमी को पहनें हरे रंग के कपड़े।
पंचमी: हरा रंग हर क्षेत्र में सफलता के लिए आवश्यक वृद्धि और उर्वरता का प्रतीक है।
6. कात्यायनी (Kathyayini in Hindi)
देवी माँ का छठा रूप का नाम है, देवी कात्यायनी है।माँ दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की आराधना की जाती है। जिन लड़कियों की शादी न हो रही हो या उसमें बाधा आ रही हो, वे कात्यायनी माता की उपासना करें।
पौराराणिक कथा के अनुसार वनमीकथ का नाम के महर्षि थे, उनका एक पुत्र था जिसका नाम कात्य रखा गया। इसके बाद कात्य गोत्र में महर्षि कात्यायन ने जन्म लिया, उनकी कोई संतान नहीं थी। उन्होंने मां भगवती को पुत्री के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की, महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर मां भगवती ने उन्हें साक्षात दर्शन दिया। कात्यायन ऋषि ने माता को अपनी मंशा बताई, देवी भगवती ने वचन दिया कि वह उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लेंगी।
जब तीनों लोक पर महिषासुर नामक दैत्य का अत्याचार बढ़ गया और देवी देवता उसके कृत्य से परेशान हो गए, तब ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव के तेज से माता ने महर्षि कात्यायन के घर जन्म लिया। इसलिए माता के इस स्वरूप को कात्यायनी के नाम से जाना जाता है। माता के जन्म के बाद कात्यायन ऋषि ने सप्तमी, अष्टमी और नवमी तीन दिनों तक मां कात्यायनी की विधिवत पूजा अर्चना की। इसके बाद मां कात्यायनी ने दशमी के दिन महिषासुर नामक दैत्य का वध कर तीनों लोक को उसके अत्याचार से बचाया।
माँ कात्यायनी की पूजा में कौन से मन्त्र का जप करें?
‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कात्यायनायै नम:’ के जप से आप माँ दुर्गा के छठें स्वरुप माँ कात्यायनी का आवाहन कर सकते हैं ।
नवरात्रि की षष्ठी को पहनें स्लेटी रंग के कपड़े।
षष्टी: ग्रे रंग संतुलन का प्रतिनिधित्व करता है।
7. कालरात्रि (Kaalaratri in Hindi)
देवी माँ के सप्तम रूप का नाम है माँ कालरात्रि।
यह माँ का अति भयावह व उग्र रूप है। सम्पूर्ण सृष्टि में इस रूप से अधिक भयावह और कोई दूसरा नहीं। किन्तु तब भी यह रूप मातृत्व को समर्पित है। देवी माँ का यह रूप ज्ञान और वैराग्य प्रदान करता है। ‘देवी कालरात्रि’ भगवती का विकराल रूप है। देवी कालरात्रि जीवन में कष्टों,बाधाओं से मुक्ति और खुशियों का संचार करती है। सच्चे मन से की गई इनकी पूजा आराधना से मनुष्य को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। जातकों को सभी तरह की नकारात्मक शक्तियों से छुटकारा मिलता है और वो सभी सुखों को प्राप्त करता है।
पौराणिक कथा के अनुसार दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में अपना आंतक मचाना शुरू कर दिया तो देवतागण परेशान हो गए और भगवान शंकर के पास पहुंचे। तब भगवान शंकर ने देवी पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए कहा। भगवान शंकर का आदेश प्राप्त करने के बाद पार्वती जी ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध किया। लेकिन जैसे ही मां दुर्गा ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त की बूंदों से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए। तब मां दुर्गा ने मां कालरात्रि के रूप में अवतार लिया। मां कालरात्रि ने इसके बाद रक्तबीज का वध किया और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को अपने मुख में भर लिया।
माँ कालरात्रि की पूजा में कौन से मन्त्र का जप करें?
‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:’ जप से आप माँ दुर्गा के सातवें स्वरुप माँ कालरात्रि की पूजा कर सकते हैं
नवरात्रि की सप्तमी को पहनें नारंगी रंग के कपड़े।
सप्तमी: संतरा रंग प्रकाश और ऊर्जा का प्रतीक है।
8. महागौरी (Maha Gauri in Hindi)
देवी माँ का आठवां दिन माता के महागौरी स्वरूप को समर्पित है। जिसे अष्टमी या महाअष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। माता का यह स्वरूप बहुत ही सौम्य और करुणामई है। ऐजो भी जातक देवी के इस स्वरूप की पूजा करता है, उसे जीवन में हो रहे सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। माता का यह सौम्य रूप है मनुष्य को अभय दान प्रदान करने वाला है। माता के इस स्वरूप की पूजा करने से सभी पाप, कष्ट, रोग और दुख मिट जाते हैं। जातक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं एवं सुख- समृद्धि प्राप्त होती है। मां महागौरी को अन्नपूर्णा, ऐश्वर्य देने वाली और चैतन्यमयी के नाम से भी पुकारा जाता है।
सौन्दर्य का प्रतीक : माँ महागौरी
महागौरी का अर्थ है – वह रूप जो कि सौन्दर्य से भरपूर है, प्रकाशमान है – पूर्ण रूप से सौंदर्य में डूबा हुआ है। प्रकृति के दो छोर हैं – एक माँ कालरात्रि जो अति भयावह, प्रलय के समान हैं, और दूसरा माँ महागौरी जो अति सौन्दर्यवान, देदीप्यमान, शांत हैं – पूर्णत: करुणामयी, सबको आशीर्वाद देती हुईं। यह वह रूप है, जो सब मनोकामनाओं को पूरा करता है।
यह भौतिक नहीं, बल्कि लोक से परे आलौकिक रूप है, सूक्ष्म से भी सूक्ष्म रूप। इसकी अनुभूति के लिए पहला कदम ध्यान में बैठना है। ध्यान में आप ब्रह्मांड को अनुभव करते हैं। इसलिए बुद्ध ने कहा है, “आप बस देवियों के विषय में बात ही करते हैं। जरा बैठिए और ध्यान करिए। ईश्वर के विषय में न सोचिए। शून्यता में जाइए, अपने भीतर। एक बार आप वहां पहुँच गए, तो अगला कदम वह है जहाँ आपको विभिन्न मंत्र, विभिन्न शक्तियाँ दिखाई देंगी, वह सभी जागृत होंगी।”
सभी पूजाएँ ध्यान के साथ शुरू होती हैं, और हजारों वर्षों से इसी परम्परा का अनुसरण किया जा रहा है। ऐसा पवित्र आत्मा के सभी विविध तत्वों को जागृत करने के लिए, उनका आह्वान करने के लिए किया जाता है। हमारे भीतर एक आत्मा है। उस आत्मा की कई विविधताएँ हैं, जिनके कई नाम, कई सूक्ष्म रूप हैं और नवरात्रि इन्हीं सब से जुड़ी है।
इन सभी तत्वों का इस धरती पर आह्वान, जागरण और पूजन करना ही नवरात्रि पर्व का ध्येय है।
माँ महागौरी की पूजा में कौन से मन्त्र का जप करें?
‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्ये नम:’ के जप से आप माँ दुर्गा के आठवें स्वरुप माँ महागौरी की पूजा कर सकते हैं ।
नवरात्रि की अष्टमी को पहनें मोरपंखी हरे रंग के कपड़े।
अष्टमी: मोरपंखी हरा विशिष्टता और वैयक्तिकता का प्रतिनिधित्व करता है।
9. सिद्धिदात्री (Siddhidhatri in Hindi)
देवी के नौंवे रूप को सिद्धिदात्री कहा जाता है।
नौवें दिन को माता के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा करने का विधान यह दिन इन्ही को समर्पित होता है। इसे नवमी या महानवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन हवन करने और कन्या पूजन का विधान है। सभी भक्तों के जीवन में यह पर्व भक्ति की एक नई तरंग लेकर आता है। इस दौरान भक्त विभिन्न प्रकार से माता के प्रति अपने समर्पण को व्यक्त करते हैं।
कमल पुष्प पर विराजमान माँ सिद्धिदात्री की चार भुजाएं हैं, और उनका वाहन सिंह है। देवी जी के सिरपर ऊंचा मुकुट है और उनके चेहरे पर मंद सी मुस्कान है। देवी सिद्धिदात्री, सर्व सिद्धियां प्रदान करने वाली हैं। उपासक या भक्त पर इनकी कृपा से कठिन से कठिन कार्य भी आसानी से संभव व सिद्ध हो जाते हैं। साथ ही वह हर प्रकार के भय व रोगों को भी दूर करती हैं।
माँ सिद्धिदात्री की पूजा में कौन से मन्त्र का जप करें?
‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्र्यै नम:’ के जप से आप माँ दुर्गा के नौवें स्वरुप माँ सिद्धिदात्री की पूजा कर सकते हैं ।
नवरात्रि की नवमी को पहनें गुलाबी रंग के कपड़े।
नवमी: गुलाबी रंग प्यार, स्नेह और एकता का प्रतीक है।
नवरात्रि के नौ रंगों का महत्व
नवरात्रि उत्सव चमकते रंगों से भरा होता है जो आपके चारों ओर सजावट, पोशाक और अलंकरणों में दिखाई देता है। क्या आपने कभी नवरात्रि के इन रंगों के महत्व के बारे में सोचा है? जी हाँ, हर रंग के पीछे एक अर्थ छिपा है जो आँखों को चकाचौंध कर देता है।
नवरात्रि के नौ रंग (Navratri Colours in Hindi)
नवरात्रि 2024 के नौ रंग सफेद, लाल, गहरा नीला, पीला, हरा, स्लेटी(ग्रे), नारंगी, मोरपंखी हरा और गुलाबी हैं।
हर साल रंग एक जैसे ही रहते हैं, लेकिन नवरात्रि के दिनों के हिसाब से इनका क्रम बदलता रहता है। नवरात्रि के रंगों की एक सूची दी गई है:
- प्रथम दिन – प्रतिपदा – सफेद
- दूसरा दिन – द्वितीया – लाल
- तीसरा दिन – तृतीया – गहरा नीला (रॉयल ब्लू)
- चौथा दिन – चतुर्थी – पीला
- पांचवा दिन – पंचमी – हरा
- छठा दिन – षष्ठी – स्लेटी (ग्रे)
- सातवाँ दिन – सप्तमी – नारंगी
- आठवां दिन – अष्टमी – मोरपंखी हरा (पीकॉक ग्रीन)
- नौवां दिन – नवमी – गुलाबी
नवरात्रि के रंगों का महत्व (Navratri Colours Mahatva in Hindi)
नवरात्रि के नौ रंगों में से प्रत्येक रंग देवी के एक विशिष्ट गुण का प्रतीक है।
- सफेद: सफेद रंग शांति, पवित्रता और देवी की पूजा करते समय भक्तों के हृदय में प्रार्थना का प्रतीक है।
- लाल: लाल रंग क्रियाशीलता और उत्साह का प्रतीक है। यह देवी के उग्र रूप का प्रतीक है।
- गहरा नीला (रॉयल ब्लू): गहरा नीला रंग शांति और गहरे नीले आकाश की गहराई का प्रतीक है। यह देवी के ज्ञान की गहराई का प्रतिनिधित्व करता है।
- पीला: पीला रंग चमक, खुशी और उत्साह का रंग है – जो देवी का गुण है।
- हरा: हरा रंग हर क्षेत्र में सफलता के लिए आवश्यक विकास और उर्वरता का प्रतीक है।
- स्लेटी: स्लेटी संतुलन का प्रतिनिधित्व करता है।
- नारंगी: नारंगी रंग चमक और ऊर्जा का प्रतीक है।
- मोरपंखी हरा: मोरपंखी हरा रंग विशिष्टता और वैयक्तिकता का प्रतिनिधित्व करता है।
- गुलाबी: गुलाबी रंग प्रेम, स्नेह और सद्भाव का प्रतीक है।
1. सर्व मंगल मंत्र
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोस्तुते॥
मंत्र का अर्थ:
हे नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हो। कल्याण दायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को सिद्ध करने वाली, शरणागत वत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो। हे मां तुम्हें हमारा नमस्कार है।
मंत्र का लाभ:
- यह मंत्र इतना शुभ है कि इसे किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले माता की वंदना स्वरूप में इस मंत्र का पठन किया जाता है।
- नवरात्रि की आठवीं शक्ति महागौरी को समर्पित यह मंत्र अत्यंत शुभ, सौभाग्य और समृद्धि प्रदान करने वाला है।
- विवाह हो या मां दुर्गा की रस्में, यह मंत्र हर जगह सुनाई देगा।
- देवी दुर्गा का यह मंत्र भय और बुरी शक्तियों का नाश कर, सभी बाधाओं को दूर कर कार्य में सिद्धि प्रदान करता हैं।
2. मंगलकारी महाकाली मंत्र
ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते॥
मंत्र का अर्थ:
जयंती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा धात्री और स्वधा नामों से प्रसिद्ध जगदंबे आपको मेरा नमस्कार है।
मंत्र का लाभ:
- इस मंत्र के जाप से जन्म-मरण और संसार के बंधन से मुक्ति मिलती है, सभी शत्रु पर विजय प्राप्त होती है।
- ऐसा माना जाता है कि यह मंत्र प्रतिदिन सुनने अथवा इसका जाप करने से, आपके अंदर साहस, शक्ति एवं सामर्थ्य का विकास होता है।
3. दुर्गा गायत्री मंत्र
ॐ गिरिजाय च विद्महे, शिवप्रियाय च धीमहि।
तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्॥
मंत्र का अर्थ:
हिमालय राज की पुत्री और भगवान शिवजी की प्रिया जिनका नाम गिरिजा है, जो विशेष बुद्धि की धारक हैं ऐसी दुर्गा मां का हम ध्यान करते है, और उन मां दुर्गा को प्रणाम करते है। माता हमें अपनी शरण में लें।
मंत्र का लाभ:
- इस मंत्र के साथ माता की साधना करने से साधक के जीवन में आत्मविश्वास बहुत बढ़ जाता है।
- किसी भी परिस्थिति में कठिन से कठिन कार्य को आसानी से पूरा करने में सक्षम होता है।
लक्ष्य निर्धारित करो दुर्गा साधना प्रत्येक नवरात्रि में संपन्न करो प्रकृति से मांगो प्राप्त होगा उसमें इतनी ताकत है कि असंभव भी संभव हो जाएगा,जब जीव को पंख मिल सकते हैं सींग मिल सकते हैं जल के भीतर रहने के लिए विशेष व्यवस्था मिल सकती है तो कुछ भी प्राप्त हो सकता है । जीव जहां से उत्पन्न हो रहा है उस मातृ कुंड में सब कुछ देने की व्यवस्था है और वह मातृ कुंड अपनी इस नैतिक जिम्मेदारी से बंधा हुआ है|
जो सर्वश्रेष्ठ है वही सर्वेश्वरी है और सर्वश्रेष्ठ साधक ही दुर्गा उपासना सही रूप से संपन्न कर सकते हैं । सर्वश्रेष्ठ आभूषणों से युक्त है श्रेष्ठ शक्तिपुंज है सर्वश्रेष्ठ वाहन पर आरूढ़ है अर्थात दुर्गा उपासना ही सर्वश्रेष्ठ उपासना है सर्वश्रेष्ठ उपासना से सर्वश्रेष्ठ पुरुष का जन्म होता है सर्वश्रेष्ठ पुरुष ही पुरुषोत्तम कहलाएगा विष्णु अवतार के अंतर्गत दुर्गा उपासना ही आती है राम कृष्ण नरसिंह वामन परशुराम इत्यादि सभी अपने-अपने युगों में पुरुषोत्तम कहलाए हैं, केवल दुर्गा उपासना के बल पर सभी अवतार एकलव्य की गति से प्रारंभ हुई और अंत में दुर्गा शक्ति के कारण ही पूजित हुए हैं । दुर्गा शक्ति ने ही मार्कंडेय से श्रेष्ठतम ग्रंथों की रचना करवाई दत्तात्रेय को महा अवधूत बनाया जब व्यक्ति जीवन में लुटता पीटता है दुखी होता है खंड खंड होता है तब दुर्गा उपासना ही एकमात्र उपाय बचता है जिससे कि वह पुनः प्राण प्रतिष्ठित हो जीवन जी पाता है ।
इस बार चैत्र नवरात्रि से पूर्व संपर्क करे,आपको निःशुल्क दुर्गा उपासना का विधि विधान दिया जायेगा । आप सभी से एक ही विनती है "इस जीवन को दुर्गा उपासना में लगा दीजिए, अवश्य ही कल्याण होगा", जय मातादी जी ।
आदेश..... आदेश..... आदेश.....