कुंडली में केतु का फलित कैसा होता है?

 ज्योतिष शास्त्र के राहु एवं केतु अति संवेदनशील बिन्दु है जिनकी भौतिक स्थिति नही है अर्थात छाया ग्रह है केतु जिस भाव एवं जिस राशि मे विद्यमान होगे के अनुसार फल प्रदान करेगे ।

जन्म कुंडली मे केतु जिस राशि मे विद्यमान है राशि पति बली एवं शुभ प्रभाव युक्त होने पर उत्कृष्ट फल प्रदान करेगे अर्थात भावेश के कारकतत्व मे वृद्धि करेगे , यदि राशि पति निर्बली एवं कमजोर अवस्था मे होने पर केतु कष्टदायक सिद्ध होगे ।

केतु स्वाभाविक रूप से क्रूर , हीन भावना , रोग कारक ग्रह है अशुभ स्वामित्व वाले ग्रह से युत होने पर कष्टकारी रहेगे , केन्द्र एवं त्रिकोण के स्वामी बली ग्रह से संबंध होने पर राजयोग का फल प्रदान करेगे , स्वराशि ग्रह से युत या भाव पति से द्रष्ट होने पर उत्तम फलदायक रहेगे ।

उपरोक्त फल निर्धारण मापदंडो के साथ केतु अपनी भाव स्थिति के अनुसार निम्नवत प्रकार से फल प्रदायक रहेगे -

● लग्न मे केतु -

ज्वर , बुखार , शारीरिक- बाधा , अतिसार , अशक्तता , क्लेश, मानसिक रोग प्रदायक रहते है ।

● द्वितीय स्थान मे केतु -

वाणी दोष , धन संचय मे परेशानी , ऋणग्रस्त स्थिति, पराधीनता , मानसिक दुखः, सब प्रकार की चिन्ता ,द्रव्य विषय की विशेष चिन्ता रहती है ।

● तृतीय स्थान मे केतु -

बन्धु विरोध, स्वतंत्र वृति , स्व पराक्रम से भाग्य उदय , ऐश्वर्य लाभ ,यशदायक, अति परिश्रमी बनाते है ।

● चतुर्थ स्थान मे केतु -

अग्नि - भय , वाहन भय , नुकसान, दुखदाई प्रसंग, लोकपवाद , दारिद्रय, जीवन साथी , संतान एवं कुटुम्बियो को क्लेश रहता है ।

● पंचम स्थान मे केतु -

बुद्धि भ्रंश, विपरीत बाते , संतति नाश , समाज से विरोध , कलंक , विद्या मे अपयश , मित्रो से नुकसान, हीनता की स्थिति, राजकोप, उतावलापन रहता है ।

● षष्ठम स्थान मे केतु -

कृश शरीर , रोग की वृद्धि , अत्यंत कष्ट , मामा सुख मे कमी , उद्योग व पराक्रम मे यशमान , स्वपराक्रम से यश , स्वपराक्रम से द्रव्य लाभ, शत्रुओ की पराजय, अधिकारी वर्ग से मित्रता रहती है ।

● सप्तम स्थान मे केतु -

जीवन साथी एवं संतान की हानि , मनोभंग, संम्पति व औद्योगिक आपत्ति , परदेश वास , मूत्रकृच्छ आदि रोगो से त्रास, अनिष्ट कारक घटना की संभावनाये रहती है ।

● अष्टम स्थान मे केतु -

पिता को कष्ट या दुख , दुष्टजन की संगति , क्षय , दमा , खाँसी रोग, द्रव्य स्थिति प्रतिकूल या धन हीनता की स्थिति रहती है ।

● नवम स्थान मे केतु -

ईश्वर निष्ठा , धार्मिक आचरण , परोपकार के कार्यो मे रुचि , स्वजन त्रास, कार्य मे बाधा , प्रापंचिक कष्ट होता है ।

● दशम स्थान मे केतु -

व्यापार, नौकरी आदि मे पहले बाधा , कष्ट , दगदग आपत्ति अन्त मे अनुकूलता की स्थिति , द्रव्य लाभ साधारण, पिता को परेशानी रहती है ।

● एकादश स्थान मे केतु -

द्रव्य अनुकूल, अधिकारी वर्ग से मित्रता , उद्योग मे यश, वैभव, ऐश्वर्य, सुख, जमीन, घर बार , वाहन सुख प्राप्ति होती है ।

● द्वादश स्थान मे केतु -

राजकीय व मानसिक कष्ट, लोगो से निन्दा, व अपमान , द्रव्य हानि , नेत्र पीड़ा, स्थानांतर प्रवास ,शारीरिक व मानसिक कष्ट रहता है ।

केतु यदि उच्च राशि वृश्चिक मूल त्रिकोण राशि धनु का हो व शुभ ग्रह से द्रष्ट हो तो शुभ फल तथा नीच राशिगत हो तो अशुभ फल मिलेगा प्रमाण शुभाशुभ ग्रहो की स्थिति , द्रष्टि पर अवलंबित रहेगा ।



GURUDEV SANTOSH TRIPATHI

आम इंसान की समस्‍याओं और चिंताओं की नब्‍ज पकड़कर बाजार में बैठे फर्जी बाबा और ढोंगी लोग ज्‍योतिष के नाम पर ठगी के लिए इस प्रकार के दावे करते हैं। ज्‍योतिष विषय अपने स्‍तर पर ऐसा कोई दावा नहीं करता।

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