सिद्ध कुंजिका स्त्रोत पाठ से मिलता है पूरी दुर्गा सप्तशती का फल, जगदंबा बरसाती हैं कृपा
कुंजिका से तात्पर्य है चाबी, यह दुर्गा सप्तशती से प्राप्त शक्ति को जगाने का कार्य करता है। सिद्ध कुंजिका स्रोत का अर्थ है कि पूर्णता का ऐसा गीत जो वृद्धि के कारण अब छिपा हुआ नहीं है। पुजारियों के अनुसार सिद्ध कुंजिका स्तोत्र पाठ से व्यक्ति दुर्गाजी की कृपा सहज रूप से प्राप्त कर लेता है और उसके जीवन में आने वाली समस्याओं से जगदंबा उसे मुक्ति दिला देती है। कई जानकारों का कहना है कि जिस व्यक्ति के पास संपूर्ण दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ का समय नहीं है तो वह केवल सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का पाठ करके भी पूरी दुर्गा सप्तशती के पाठ का फल प्राप्त कर सकता है।
शिव उवाच-
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत्॥ ।1।
अर्थ — शिव जी बोले देवी सुनो -
मैं उत्तम कुंजिका स्तोत्र का उपदेश करूंगा, जिस मन्त्र के प्रभाव से देवी का जप (पाठ) सफल होता है।
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥ ।2।
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दर्लभम॥ ।3।
अर्थ — कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास यहाँ तक कि अर्चन भी आवश्यक नहीं है । केवल कुंजिका के पाठ से दुर्गापाठ का फल प्राप्त हो जाता है। यह कुंजिका अत्यंत गुप्त और देवों के लिए भी अति दुर्लभ है ।
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति
मारणं मोहनं वश्यं स्तंभनोच्चाटनादिकम
पाठमात्रेण संसिध्येत कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्॥ ।4।
अर्थ — हे पार्वती ! स्वयोनि की भांति इस स्तोत्र को प्रयत्नपूर्वक गुप्त रखना चाहिए। यह उत्तम कुंजिकास्तोत्र पाठ के द्वारा मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन और उच्चाटन आदि अभिचारिक उद्देश्यों को सिद्ध करता है।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
ॐ ग्लौं हूं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्ज्वल प्रज्ज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा॥
(मंत्र में आये बीजों का अर्थ जानना न संभव है, न आवश्यक और नही वांछनीय केवल जप पर्याप्त है।)
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥
अर्थ — हे रुद्ररूपिणी, तुम्हे नमस्कार। हे मधु देत्य को मारने वाली, तुम्हे नमस्कार है। कैटभविनाशिनी को नमस्कार। महिषासुर को मारने वाली देवी, तुम्हे नमस्कार है ।
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि ।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व में॥ ।२।
अर्थ — शुम्भ का हनन करने वाली और निशुम्भ को मारने वाली महादेवी जागो और मेरे द्वारा जप किये गये इस मंत्र को सिद्ध करो।
ऐकारी सष्टिरुपाये ह्रींकारी प्रतिपालिका
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोस्तु ते॥
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥
अर्थ — हे महादेवी, मेरे जप को जाग्रत और सिद्ध करो। ऐंकार के रूप में सृष्टिरूपिणी, ‘हीं के रूप में सृष्टि का पालन करने वाली, क्लीं के रूप में कामरूपिणी (तथा अखिल ब्रह्माण्ड) की बीजरूपिणी देवी तुम्हे नमस्कार है। चामुंडा के रूप में तुम चण्डविनाशिनी और येकार के रूप में वर देने वाली हो।
धां धीं धूं धूर्जटे पत्नी वां वीं वू वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रू कालिका देवि शां शी शूं में शुभं कुरु॥
अर्थ — ‘धां धीं धूं के रूप में धूर्जटी (शिव) की तुम पत्नी हो। ‘वां वीं वू’ के रूप में तुम वाणी की अधीश्वरी हो। ‘क्रां क्रीं क्रू’ के रूप में कालिकादेवी, ‘शां शीं शू’ के रूप में मेरा कल्याण करो ।
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं— भैरवी भद्रे भवान्य ते नमो नमः॥
अर्थ — ‘हुं हुं हुंकार’ स्वरूपिणी, ‘जं जं ज’ जम्भनादिनी, ‘भ्रां भी भू के रूप में हे कल्याणकारिणी भैरवी भवानी, तुम्हें बार बार प्रणाम ।
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥।७।
अर्थ — ‘अं कं चंटं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं ह क्ष धिजाग्रं धिजाग्रं’ इन सबको तोड़ो और दीप्त करो, करो स्वाहा।
पां पी पूं पार्वती पूर्णा खां खी खूं खेचरी तथा ।
सां सी सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिं कुरुष्व मे।।
अर्थ — ‘पां पी पूं’ के रूप में तुम पार्वती पूर्णा हो। ‘खां खीं खू’ के रूप में तुम खेचरी (आकाशचारिणी) अथवा खेचरी मुद्रा हो। ‘सां सी सूं’ स्वरूपिणी सप्तशती देवी के मन्त्र को मेरे लिए सिद्ध करो।
इदं तु कुंजिका स्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।
अभक्त्ये नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ।।
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ।।
अर्थ — यह सिद्धकुंजिका स्तोत्र मन्त्र को जगाने के लिए है। इसे भक्तिहीन पुरुष को नहीं देना चाहिए। हे पार्वती ! इस मन्त्र को गुप्त रखो। हे देवी! जो बिना कुंजिका के सप्तशती का पाठ करता है, उसे उसी प्रकार सिद्धि नहीं मिलती जिस प्रकार वन में रोना निरर्थक होता है।
इति श्री सिद्धकुंजिकास्तोत्रं सम्पूर्णम॥
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के लाभ
*कुंजिका स्त्रोत का पाठ करना एक पूरी दुर्गा सप्तशती के पाठ करने के बराबर माना जाता है. क्योंकि स्वयं भगवान शिव द्वारा माता पार्वती को रुद्रयामल के गौरी तंत्र के अंतर्गत बताया गया है. इस स्त्रोत के जो मूल मंत्र हैं, वे सभी नवाक्षरी मंत्र अर्थात ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे के साथ ही आरंभ होते हैं.
*यह अपने आप में इतना कल्याणकारी और शक्तिशाली स्रोत है कि यदि आप इसका पाठ कर लेते हैं तो इसके उपरांत आप को किसी अन्य जप या पूजा करने की भी आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि कुंजिका स्त्रोत के पाठ करने से आपके सभी जाप सिद्ध हो जाते हैं और आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं.
*यदि आपके शत्रु बढ़ गए हैं या कोई शत्रु आपको अत्यंत ही भयभीत हैं परेशान कर रहा है तो उसे मुक्ति पाने के लिए आप सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं. देवी की कृपा से आपके शत्रुओं का नाश होगा और आपको समस्याओं से मुक्ति प्राप्त होगी.
इसके साथ ही आपको देवी भगवती की कृपा प्राप्त होती है और दुर्गा जी के आशीर्वाद से आपके जीवन में आने वाली सभी समस्याओं से आपको मुक्ति मिल जाती है. कुंजिका स्रोत में अनेक बीजों अर्थात बीज मंत्रों का समावेश है, जो अत्यंत ही शक्तिशाली हैं.
इस दिव्य स्तोत्र की सहायता से आप अपने जीवन से संबंधित सभी प्रकार की समस्याओं जैसे कि आपका स्वास्थ्य, आपका धन, आपके जीवन में समृद्धि और आपके जीवन साथी के साथ अच्छे संबंधों के लिए भी यह स्तोत्र अत्यंत कारगर है. इसके साथ ही साथ यह गृह क्लेश की स्थितियों को भी दूर करता है.
*यह एक ऐसी अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावशाली प्रार्थना है जो सहज रूप से फल देने में सक्षम है और देवी के रूप दुर्गा की असीम कृपा प्रदान करने के लिए जो मंत्र होते हैं उन्हें सक्रिय करने के लिए ही इसका उपयोग विशेष रूप से फलदायी होता है.
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने से सभी प्रकार की विघ्न बाधाओं का नाश होता है तथा सिद्ध कुंजिका स्तोत्र और देवी सूक्त के पाठ के साथ ही यदि आप सप्तशती का पाठ करते हैं, तो आपको परम सिद्धि की प्राप्ति हो सकती है.
*जब भी आप स्वयं को अत्यंत ही संकटों से घिरा हुआ पाएं या काफी लंबे समय से लटका हुआ आपका कोई काम नहीं बन रहा हो तो, आपको मां भगवती की कृपा प्राप्त करनी चाहिए और इसके लिए दुर्गा जी को समर्पित यह कुंजिका स्तोत्र सर्वोत्तम है.
जय माता दी
जय माता दी
जय माता दी
जय माता दी
जय माता दी