'मंत्र' गुरु से ही क्यों लें, स्वयं ले कर उसका जप क्यों न करें?

                                             गुरु दीक्षा क्यों लेनी चाहिए

जब तक हम #गुरु #दीक्षा नहीं लेते, तब तक हमारे द्वारा किए गए #दान, #धर्म, #अनुष्ठान का हमें पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है. इसके अलावा #कन्यादान, #शिवलिंग निर्माण, #मंदिर निर्माण आदि चीजों का भी फल हमें प्राप्त नहीं होता है. इसके अलावा यह भी बताया जाता है कि अगर मृत्यु से पहले गुरु नहीं बनाया है. तो मृत्यु के बाद आपको #मोक्ष की प्राप्ति भी नहीं होती है. इसलिए इस संसार में गुरु दीक्षा लेना बहुत जरूरी है. सही उम्र में दीक्षा लेना जरूरी होता है.

कल्पना करिये कि आप गुरु से दीक्षित नहीं हैं और, आप किसी देवी या देवता की उपासना करते हैं अथवा साधना करते हैं । तो आप जान लीजिए कि आप जो भी साधना करेंगे तो उसकी ऊर्जा या उसका फल आपको सीधे ही प्राप्त होगा । उन देवी या देवताओं को इस बात से चिंता अवश्य हो सकती है कि उनका साधक उस ऊर्जा को झेल पायेगा या नहीं लेकिन, वो इस बात के लिए बाध्य नहीं होते हैं कि वो आपकी साधना का फल आपको न दे सकें । बात सीधी सी है; आप उनकी साधना करेंगे तो आपको उस साधना का फल प्राप्त होगा ही और वह ऊर्जा आपको स्वतः ही प्राप्त हो जाएगी । पर आपके इष्ट को, उससे होने वाले लाभ या हानि से ज्यादा सरोकार नहीं रहता । वो आपको समझाने का प्रयत्न तो कर सकते हैं पर आपको साधना का फल लेने से रोक नहीं सकते । और, यहीं पर काम गड़बड़ हो जाता है । इतिहास साक्षी है कि जितने भी साधक शक्ति प्राप्त किये हैं, गुरु के अभाव में वही शक्ति उनके लिए दोधारी तलवार ही साबित हुयी है ।
पर गुरु के साथ ऐसा नहीं होता । गुरु आपके जन्म जन्मांतर के साक्षी होते हैं । आपके हानि-लाभ में, आपके सुख-दुख में बराबर के भागीदार होते हैं और वो अपने शिष्य को कभी भी पतन के गर्त में नहीं जाने देते । आप जितनी भी साधना करते हैं तो उस साधना की ऊर्जा सीधे आपके पास नहीं पहुंचती है । वो पहले गुरु के पास जाती है । गुरु ही आपकी क्षमता के अनुसार ये तय करते हैं कि आपको कितनी और किस प्रकार की ऊर्जा दी जाए । अगर गुरु ऐसा न करें तो शायद आधे तो ज्यादा साधक या तो विक्षिप्त होकर पागलों की तरह हो जाएंगे या फिर अपना ही शारीरिक या मानसिक नुकसान कर सकते हैं ।

कबीर दास ने लिखा कि “हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर” 

मतलब:- ''हरि अगर रूठ जायें, तो गुरु ठिकाना दे देंगे. लेकिन, अगर गुरु रूठ जायें, तो कहीं भी ठिकाना नहीं मिलेगा.” 

श्री राम चरितमानस में गोस्वमी तुलसी दास ने लिखा “बंदउं गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि. महामोह तम पुंज जासु बचन रबिकर निकर” 

अर्थात् गुरू मनुष्य रूप में नारायण ही हैं.

आजकल जैसे ढोंगी और स्वार्थी गुरु बनने वालों की भरमार हो गई है उससे तो बिना गुरु के रहना ही अच्छा है। गुरु की सहायता से शिष्य को अध्यात्म मार्ग में अग्रसर होने में निस्संदेह बड़ी सहायता मिलती है और सब सद्गुरु कम योग्यता और अधिकार वाले शिष्यों को भी अपनी शक्ति द्वारा अग्रसर कराके मुक्ति का पथिक बना देते हैं। इसीलिये शास्त्र में कहा गया है-

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्रेव महेश्वरः गुरुरेव परंब्रह्म तस्मै श्री गरुवेनमः


दीक्षा से लाभ

गुरु दीक्षा में गुरु अपने शिष्य के अंदर बीज रूपी मंत्र को स्थापित करते हैं, जब शिष्य इस बीज मंत्र का जप करता है तो वह इस बीज को पुष्ट करता है। यह प्रक्रिया वैसे ही है जैसे हम बीज लाकर उसे धरती में बोते हैं फिर उसका खाद, पानी, धूप, हवा आदि के द्वारा सिंचन करते हैं फिर धीरे धीरे बीज अंकुरित होता है और समय के साथ वृक्ष बनता है।

जब हम गुरु मंत्र का निरंतर गुरु मार्गदर्शन में जप करते हैं तो एक समय बाद वह मंत्र सिद्ध होता है तथा हमें सिद्धि रूपी फल प्राप्त होता है।

गुरु मंत्र ईश्वर प्राप्ति का सबसे सरल तथा सुगम माध्यम है।

                                'मंत्र' गुरु से ही क्यों लें, स्वयं ले कर उसका जप क्यों न करें?

जिस प्रकार बाज़ार में माता-पिता अपने बालक के लिये श्रेष्ठ वस्तु का चयन करते हैं उसी प्रकार गुरु भी अपने शिष्य के लिये उपयुक्त मंत्र का चयन कर प्रदान करते हैं। बहुत से ऐसे मंत्र हैं जो कीलित हैं, गुरु जब मंत्र प्रदान करते हैं तो वह उत्कीलन करके ही प्रदान करते हैं जिससे शिष्य पूर्ण लाभ प्राप्त कर सकता है।

स्वयं मंत्र का चयन करने के बहुत हानि हैं जैसे अवांछित शक्तियों का जाग्रत हो जाती हैं, कीलित मंत्र का जप व्यर्थ है, जब कर्म कटने प्रारम्भ होंगे तो जो कष्ट आयेंगे उनसे रक्षा करने वाला कोई न होगा, सभी मन्त्रों का 1 निश्चित क्रम होता है उसे न जानने पर वह मंत्र हानि भी पहुंचा सकता है।

                                   गुरु दीक्षा लेने के बाद जीवन में किस तरह के बदलाव आते हैं?

अब आते हैं आपके मूल प्रश्न के उत्तर पर कि गुरु दीक्षा लेने के बाद जीवन में किस तरह के बदलाव आते हैं? आपको 1 बात स्पष्ट बताना चाहूंगा गुरु दीक्षा के बाद आपको कुछ भी बदलाव नहीं दिखेगा अगर आप गुरु के प्रति अश्रद्धा रखते हैं, गुरु के लिए अप्रिय, कटुक अथवा कठोर भाव रखते हैं, गुरु मंत्र का जप नहीं करते हैं।

अगर आप गुरु के बताये मार्ग का अनुसरण करते हैं तो विश्वास मानिये आपके जीवन मे बहुत से सुखद बदलाव आपको देखने को मिल सकते हैं जैसे मानसिक शांति, अपार धन संपदा (अगर आप चाहते हैं), मान सम्मान, यश, वैभव तथा जीवन ऐसा हो जायेगा जैसे आपने अपनी जीवन नैया गुरुदेव के हाथ सौंप दी है और गुरु भगवान उस नौका को स्वयं भवसागर से पार लगा रहे हैं परंतु ऐसा तब होगा जब आपको साधना करते हुए कम से कम 2–3 वर्ष बीत जाएंगे तथा आप अपने गुरुमंत्र को जाग्रत कर लेंगे। गुरु सिर्फ हमको मार्ग दिखा सकते हैं उस मार्ग पर चलना हमारा ही काम है, यह मार्ग बहुत कठिन है जिसपर हमें चलना है, गुरु सिर्फ हमें कठनाई को पार करने का तरीका बतायेंगे, कठिनाई हमें स्वयं पर करनी है।

निष्कर्ष

गुरुदीक्षा के बाद आप दो दिन में सुपरमैन नहीं हो जाएंगे। बहुत लम्बी और कठिन यात्रा पर आपने पैर रखा है, उस पर चलिये और ईश्वर प्राप्ति तक की यात्रा को गुरुदेव के सहयोग से पूर्ण कीजिये।


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