दुर्गा सप्तशती पाठ ऋषि मार्कंडेय द्वारा लिखा गया है जो मार्कंडेय पुराण का हिस्सा है। दुर्गा सप्तशती पाठ के अध्यायों में 700 श्लोक हैं और इसीलिए इस रचना को दुर्गा सप्तशती कहा जाता है।
दुर्गा सप्तशती का पाठ बहुत शक्तिशाली है और इसी वजह से इसकी लोकप्रियता बढ़ी है।
दुर्गा सप्तशती का पाठ करने के अनेक लाभ हैं। वे इस प्रकार हैं:
- जैसे ही आप दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं, आपकी जन्म कुंडली में प्रतिकूल ग्रहों की स्थिति के नकारात्मक प्रभाव कम हो जाते हैं।
- मंत्रोच्चार करने वालों को दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त हो सकता है तथा वे अपने शत्रुओं से रक्षा कर सकती हैं।
- दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से सुख और संतोष की प्राप्ति होती है।
- देवी दुर्गा चंडी पाठ को बहुत महत्व देती हैं, इसलिए जो कोई भी इसका जाप करता है उसे उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- अच्छा स्वास्थ्य और प्रचुर धन दोनों संभव हैं।
- आप ऋण या धन संबंधी मुद्दों पर शक्तिहीन नहीं हैं।
- आप अपनी सच्ची इच्छाएं पूरी कर सकते हैं।
- यह आपको काले जादू से बचाएगा।
- इसके परिणामस्वरूप आपको जीवन की कठिनाइयों का सामना करने का साहस मिल सकता है।
- आपको अच्छा जीवन साथी मिलता है और अच्छी संतान प्राप्त होती है।
- दुर्गा सप्तशती का नियमित पाठ करने से विभिन्न लाभ प्राप्त होते हैं।
- प्रथम चरित्र में तारा, काली, छिन्नमस्ता, सुमुखी, बाला और कुब्जा का उल्लेख किया गया है।
- द्वितीय चरित्र में लक्ष्मी, काली, ललिता, दुर्गा, गायत्री, अरुन्धती और सरस्वती का उल्लेख मिलता है।
- तृतीय और अंतिम चरित्र में माहेश्वरी, ब्राह्मी, वैष्णवी, कौमारी, वाराही, नारसिंही और चामुंडा का उल्लेख है।
दुर्गा सप्तशती में तेरह अध्याय हैं और हर अध्याय का अपना महत्व है। नीचे इन अध्यायों के बारे में बताया गया है।
1. प्रथम अध्याय :मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधि को भगवती की महिमा बताते हुए मधु कैटभ प्रसंग
प्रथम अध्याय के पाठ से मिलने वाले फल
इस अध्याय का पाठ करने से चिंताएं मिट जाती हैं। अगर आपको मानसिक विकार हैं और इसकी वजह से जीवन में परेशानियां आ रही हैं तो इस अध्याय का पाठ करने से मन सही दिशा की ओर अग्रसर होता है और खोई हुई चेतना वापस लौट आती है।
2. द्वितीय अध्याय :देवताओं के तेज से देवी मॉं का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
द्वितीय अध्याय के पाठ से मिलने वाले फल
इस अध्याय का पाठ करने से मुकदमे, झगड़े आदि में विजय प्राप्त होती है। लेकिन आपने यदि इस अध्याय का पाठ दूसरे का बुरा या बुरी नियत से किया तो इसका फल प्राप्त नहीं होता।
3. तृतीय अध्याय : सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
तृतीय अध्याय के पाठ से मिलने वाले फल
इस अध्याय का पाठ आप अपने विरोधियों या शत्रुओं से छुटकारा पाने के लिए कर सकते हैं। यदि आपके शत्रु बिना कारण बन रहे हों और आपको अपने गुप्त शत्रुओं का पता न चल पा रहा हो तो इस अध्याय का पाठ करना आपके लिए उपयुक्त है.
4. चतुर्थ अध्याय :इन्द्रादि दवताओं द्वारा देवी मॉं की स्तुति
चतुर्थ अध्याय के पाठ से मिलने वाले फल
इस अध्याय का पाठ उन लोगों के लिए लाभकारी होता है जो भक्ति, शक्ति तथा दर्शन से जुड़ना चाहते हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो इस अध्याय का पाठ करना उनके लिए अच्छा है जो माता की भक्ति और साधना के द्वारा समाज का कल्याण करना चाहते हैं।
5. पंचम अध्याय : देवताओं के द्वारा देवी की स्तुति, चण्ड-मुण्ड के मुख से अम्बिका के रुप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
पंचम अध्याय के पाठ से मिलने वाले फल
इस अध्याय का पाठ उन लोगों के मनोरथ भी पूरा कर सकता है जिनकी मनोकामनाएं कहीं पूरी नहीं हुई हैं। इस अध्याय का नियमित पाठ करना बहुत शुभ माना गया है।
6. षष्ठम अध्याय : धूम्रलोचन- वध
षष्ठम अध्याय के पाठ से मिलने वाले फल
इस अध्याय का पाठ डर से मुक्ति या किसी बाधा से मुक्ति के लिए करना शुभ होता है। अगर आपकी कुंडली में राहु खराब स्थिति में है या केतु पीड़ित है तो भी इस अध्याय का जाप करना शुभ होता है। अगर तंत्र, जादू या भूत-प्रेत से जुड़ी कोई समस्या है तो इस अध्याय का पाठ करें।
7. सप्तम अध्याय : चण्ड-मुण्ड का वध
सप्तम अध्याय के पाठ से मिलने वाले फल
मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए इस अध्याय का पाठ किया जाता है। लेकिन किसी के अहित में यदि आप इस अध्याय का पाठ करते हैं तो आपको बुरे प्रभाव मिल सकते हैं।
8. अष्टम अध्याय : रक्तबीज का वध
अष्टम अध्याय के पाठ से मिलने वाले फल
इस अध्याय का पाठ वशीकरण या मिलाप के लिए किया जाता है। वशीकरण गलत तरीके नहीं बल्कि भलाई के लिए किया जाए, कोई बिछड़ गया हो तो इस अध्याय का जाप करना असरदायक होता है।
9. नवम अध्याय : विशुम्भ का वध
नवम अध्याय के पाठ से मिलने वाले फल
इस अध्याय का पाठ कामनाओं की पूर्ति के लिए पुत्र प्राप्ति के लिए और खोए हुए लोगों की तलाश के लिए किया जाता है.
10. दशम अध्याय : शुम्भ का वध
दशम अध्याय के पाठ से मिलने वाले फल
इस अध्याय का पाठ संतान प्राप्ति के लिए करना शुभ माना जाता है। इसके साथ ही संतान गलत रास्ते पर न जाए इसके लिए भी इस अध्याय का पाठ करना शुभ होता है।
11. एकादश अध्याय : देवताओं के द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान प्रदान किया जाना
एकादश अध्याय के पाठ से मिलने वाले फल
इस अध्याय का पाठ करना व्यापारियों के लिए शुभ होता है। इस अध्याय का पाठ करने से व्यापार में सफलता और सुख-संपत्ति मिलती है। यदि आपके कारोबार में हानि हो रही है तो इस अध्याय का पाठ करना शुभ है। अगर पैसा नहीं रुकता तो इस अध्याय का पाठ करें।
12. द्वादश अध्याय : देवी-चरित्रों के पाठका माहात्म्य
द्वादश अध्याय के पाठ से मिलने वाले फल
इस अध्याय का पाठ मान-सम्मान तथा लाभ प्राप्ति के लिए किया जाता है। यदि आप पर कोई आरोप-प्रत्यारोप करता हो तो यह पाठ करें।
13. त्रयोदश अध्याय : सुरथ और वैश्य को देवी का वरदान
त्रयोदश अध्याय के पाठ से मिलने वाले फल
इस अध्याय का पाठ भक्ति मार्ग पर सफलता पाने के लिए किया जाता है। साधना के बाद पूर्ण भक्ति के लिए यह पाठ करें।
क्यों और कैसे शापित है दुर्गा सप्तशती के तांत्रिक मंत्र
ऐसा माना जाता है कि दुर्गा सप्तशती के तांत्रिक मंत्र शापित हैं। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। इस कथा के अनुसार एक समय माता पार्वती को किसी कारण-वश अत्यधिक क्रोध आ गया और उन्होंने रौद्र रुप धारण कर लिया, उनके इसी रौद्र रुप को हम मॉं काली कहते हैं। कथा के अनुसार मॉं काली के रुप में क्रोध से भरी मॉं पार्वती ने पृथ्वी पर विचरण करना शुरु कर दिया और सामने आने वाले हर प्राणी का वध वो करने लगीं। उनके इस रुप को देखकर सुर-असुरों सहित सभी देवी-देवता भी भयग्रस्त हो गए माता के क्रोध को शांत करने के लिए सारे देवी-देवता भगवान शिव के पास गए और उनसे प्रार्थना करने लगे। देवी-देवताओं ने शिव जी से कहा कि आप ही मॉं काली को शांत कर सकते हैं।
देवी-देवताओं के अनुरोध पर शिव जी ने ब्रह्मजी को जवाब दिया कि- अगर वो ऐसा करते हैं तो इसका परिणाम भयानक हो सकता है। ऐसा करने से पृथ्वी पर दुर्गा के रुप मंत्रों से भयानक शक्ति का उदय होगा और दानव इसका प्रयोग गलत कामों को करने में कर सकते हैं। इसकी वजह से संसार में आसुरी शक्तियों का वास हो जाएगा।
इसके उत्तर में ब्रह्मजी ने भोलेनाथ से कहा कि, आप रौद्र रुप धारण कर देवी को शांत कर दीजिए और इस दौरान उदय होने वाले मां दुर्गा के रुप मंत्रों को शापित कर दीजिए, ताकि भविष्य में किसी के भी द्वारा इन मंत्रों का दुरुपयोग न किया जा सके। इस दौरान वहां भगवान नारद भी मौजूद थे जिन्होंने ब्रह्मजी से पूछा कि- हे पितामह अगर भगवान शिव ने उदय होने वाले मॉं दुर्गा के सभी रुप मंत्रों को शापित कर दिया तो, संसार में जिसको सच में देवी के रुपों की आवश्यकता होगी वे लोग तो दुर्गा के तत्काल जाग्रत मंत्र रुपों को पाने से वंचित रह जाएंगे। उन्हें ऐसा क्या उपाय करना पड़ेगा जिससे वो इन जाग्रत मंत्रों का फायदा उठा सकें?
नारद जी के इस सवाल के जवाब में भगवान शिव ने दुर्गा सप्तशती को शापमुक्त करने की विधि बतलाई, जो कि नीचे बताई गई है। जो व्यक्ति इस विधि का अनुसरण नहीं करता और इसके बिना दुर्गा सप्तशती के वशीकरण, मारण और उच्चाटन जैसे मंत्रों को सिद्ध करने की कोशिश करता है तो उसे दुर्गा सप्तशती के पाठ का पूरा लाभ प्राप्त नहीं होता।
दुर्गा सप्तशती शाप मुक्ति की विधि
शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति माता दुर्गा के रुप मंत्रों को किसी अच्छे कार्य के लिए जाग्रत करना चाहता है उसे सबसे पहले दुर्गा सप्तशती को शाप मुक्त करना पड़ता है। दुर्गा सप्तशती को शापमुक्त करने के लिए सर्वप्रथम नीचे दिये गये मंत्र का सात बार पाठ करना चाहिए।
ऊँ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शापनाशागुग्रहं कुरू कुरू स्वाहा
इस मंत्र का उच्चारण करने के बाद नीचे दिये गये मंत्र का उच्चारण 21 बार करना होता है
ऊँ श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशति चण्डिके उत्कीलनं कुरू कुरू स्वाहा
इसके बाद नीचे दिये गये मंत्र का जाप 21 बार करना चाहिए
ऊँ ह्रीं ह्रीं वं वं ऐं ऐं मृतसंजीवनि विधे मृतमूत्थापयोत्थापय क्रीं ह्रीं ह्रीं वं स्वाहा
अंत में निम्नलिखित मंत्र का 108 बार जप करना होता है-
ऊँ श्रीं श्रीं क्लीं हूं ऊँ ऐं क्षाेंभय मोहय उत्कीलय उत्कीलय उत्कीलय ठं ठं
ऊपर दी गई विधि को पूरा करने के बाद दुर्गा-सप्तशती ग्रंथ भगवान शिव के शाप से मुक्त हो जाता है। इस पूरी प्रक्रिया को हम दुर्गा पाठ की कुंजी के नाम से भी जानते हैं। जब तक इस कुंजी का पाठ नहीं किया जाता तब तक दुर्गा सप्तशती के पाठ से उतना अच्छा फल प्राप्त नहीं होता जितना आप चाहते हैं। शापमुक्त होने के बाद ही दुर्गा सप्तशती का पाठ करना फलदायी साबित होता है।
दुर्गा सप्तशती के कुछ महत्वपूर्ण मंत्र
दुर्गा सप्तशती में कुछ ऐसे मंत्र हैं जिनको उच्चारित करके शुभ फलों की प्राप्ति अवश्य होती है। यह मंत्र नीचे दिये गये हैं। आप भी इन मंत्रों का उच्चारण करके जीवन की हर परेशानी से बच सकते हैं।
1.भय नाश के लियेभयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तु ते।।
एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम्।
पातुन: सर्वभीतिभ्य: कात्यायनि नमोस्तु ते।।
ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम्।
त्रिशुलं पातुनो भीतेर्भद्रकालि नमोस्तु ते।।
ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तुमलं बलं च।
सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय
नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु।।
र्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्य:।
पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु
उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान्।।
विश्वावात्मिका धारयसीति विश्वम्।
विश्वेशवन्द्या भवती भवन्ति
विश्वाश्रया ये त्वयि भक्तिनम्रा:।।
प्रसीद मातर्जगतोखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं
त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य।।
पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि:।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्।।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोस्तु ते।।
शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापद:।
निश्शेषदेवगणशक्ति समूहमूत्र्या।
तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां
भक्त्यानता: स्म विदधातु शुभानि सा न:॥
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणि नमोस्तु ते।।
रुष्टातुकामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
तवामाश्रिता हृााश्रयतां प्रयान्ति।।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्।।
घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च।।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योन: सुतानिव।।
कैसे शुरु करें दुर्गा सप्तशती का पाठ
शास्त्रों में दुर्गा सप्तशती के पाठ को नियमों का पालन करते हुए बहुत ही सावधानी से करने की सलाह दी जाती है। अगर दुर्गा सप्तशती का पाठ नियमों का पालन करते हुए पूरे विधि-विधान से किया जाए तो मनचाहे फल अवश्य मिलते हैं। नवरात्री के नौ दिनों में दुर्गा सप्तशती का पाठ करना अत्यंत शुभ माना गया है। अगर आप दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हुए नियमों का पालन नहीं करते तो आपको इसके भयानक परिणाम भी प्राप्त हो सकते हैं:-
- मॉं दुर्गा के सप्तशती पाठ को शुरु करने से पहले आपको किसी पवित्र स्थान से मिट्टी लाकर एक वेदी बनानी चाहिए और उसमें जौ और गेहूं बोने चाहिए। आपके द्वारा किया गया माता का पाठ कितना फलदायक या कितना सार्थक साबित हुआ इसका अंदाजा इन जौ और गेंहुओं के अंकुरित होने के अनुसार लगाया जाता है। अर्थात गेंहूं और जौ यदि शीघ्रता से अंकुरित हों तो इससे यह संकेत मिलता है कि हमारा दुर्गा पाठ सही दिशा में जा रहा है और इससे हमें अच्छे फल प्राप्त होंगे।
- इसके उपरांत वेदी के ऊपर कलश की स्थापना पंचोपचार विधि से करनी चाहिए।
- तदोपरांत कलश के ऊपर मूर्ति की प्रतिष्ठा पंचोपचार विधि से करनी चाहिए।
- माता का पूजन करते समय आपको सात्विक भोजन करना चाहिए। इस दौरान आपको मांस-मदिरा जैसी चीजों से बिलकुल दूर रहना चाहिए।
- व्रत के आरंभ में स्वस्ति वाचक शांति पाठ करने के बाद हाथ की अंजुली में जल भरकर दुर्गा पाठ शुरु करने का संकल्प लेना चाहिए।
- इसके बाद भगवान गणेश की पूजा के साथ-साथ लोकपाल, नवग्रह एवं वरुण का पूजन विधि पूर्वक करना चाहिए।
- इसके बाद मॉं दुर्गा का षोडशोपचार पूजन करें।
- अब पूरी श्रद्धा के साथ मॉं दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
दुर्गा-सप्तशती के पाठ की विधि
भारत के धर्म शास्त्रों में दुर्गा सप्तशती का पाठ करने की कई विधियों का जिक्र मिलता है जिनमें से दो विधियां सबसे ज्यादा प्रचलित हैं। इनका विवरण नीचे दिया गया है:-
- प्रथम विधि
दुर्गा सप्तशती की इस पाठ विधि में नौ ब्राह्मण साधारण विधि के द्वारा पाठ आरंभ करते हैं। अर्थात इस विधि में केवल पाठ किया जाता है, पाठ के समाप्त होने पर हवन आदि नहीं किया जाता।
इस विधि में एक ब्राह्मण द्वारा दुर्गा सप्तशती का आधा पाठ किया जाता है। इस आधे पाठ को करने से ही संपूर्ण पाठ की पूर्णता मानी जाती है। जबकि इसमें एक अन्य ब्राह्मण द्वारा षडंग रुद्राष्टाध्यायी का पाठ विधि पूर्वक किया जाता है।
- दूसरी विधि
दुर्गा सप्तशती का पाठ करने की दूसरी विधि अत्यंत सरल है। इस विधि में एक दिन एक पाठ (पहला अध्याय), दूसरे दिन दूसरा और तीसरा अध्याय, तीसरे दिन चौथा अध्याय, चौथे दिन पंचम, षष्ठम, सप्तम और अष्टम अध्याय, पांचवें दिन नवम और दशम अध्याय, छठे दिन एकादश अध्याय, सातवें दिन द्वादश और त्रयोदश अध्याय करने से सप्तशती की एक आवृती पूरी हो जाती है। इस विधि से दुर्गा सप्तशती का पाठ करने पर आठवें दिन हवन और नवें दिन पूर्ण आहुति की जाती है।
अगर आप बिना रुके दुर्गा सप्तशती का पाठ कर सकते हैं तो त्रिकाल संध्या के रुप में पाठ को आप तीन हिस्सों में विभाजित करके इसका पाठ कर सकते हैं।
दुर्गा सप्तशती पाठ में इन बातों का रखें ध्यान
दुर्गा सप्तशती के पाठ करने के कुछ नियम हैं जिनका पालन करके आप विशेष फलों की प्राप्ति कर सकते हैं। नीचे जानिये उन बातों के बारे में:-
- किसी भी शुभ फल के लिए की जा रही पूजा गणेश जी की पूजा से होती है इसलिए दूर्गा सप्तशती के पाठ से पहले भई आपको गणेश पूजन करना चाहिए।
- दुर्गा सप्तशती के पाठ में अर्गला, कवच और कीलक के स्तोत्र से पूर्व शापोद्धार करना आवश्यक है। शापोद्धार के बिना आपको दुर्गा सप्तशती का सही प्रतिफल नहीं मिलता क्योंकि दुर्गा सप्तशती का हर मंत्र ब्रह्मा, विश्वामित्र और वशिष्ठ द्वारा शापित है।
- श्रीदुर्गा सप्तशती के पाठ से पूर्व और बाद में नर्वाण मंत्र 'ओं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्चे' का पाठ करना बहुत ज़रुरी माना गया है। इस मंत्र में, मॉं सरस्वती, ऊंकार, मॉं लक्ष्मी और मॉं काली के बीजमंत्र है निहित हैं।
- अगर आप सप्तशती का पाठ संस्कृत में नहीं कर पा रहे हैं तो इसे आप हिंदी में सरलता से पढ़ सकते हैं। हिंदी में इसका पाठ करते हुए इसका अर्थ भी आप आसानी से समझ सकते हैं।