पूजा के दौरान शंख क्यों बजाते हैं?

 प्राचीन काल से ही हमारे ऋषि-मुनि अपनी पूजा-साधना में शंख ध्वनि का प्रयोग करते रहे हैं. श्रीहरि का प्रिय वाद्य यंत्र किसी साधक की मनोकामना को पूर्ण करके उसके जीवन को सुखमय बनाता है. मान्यता है कि शंख बजाने से जहां तक उसकी ध्वनि जाती है, वहां तक की सभी बाधाएं, दोष आदि दूर हो जाते हैं.

पूजा में शंख बजाना क्यों है जरूरी? जानिए कैसे हुई शंख की उत्पत्ति और क्या हैं इसके लाभ?

शंख को जैन, बौद्ध, शैव, वैष्णव आदि परंपराओं में अत्यंत शुभ माना गया है. भगवान विष्णु का तो ये अत्यंत प्रिय है. यही वजह है कि जहां कहीं भी भगवान श्री नारायण की पूजा होती है, वहां शंखनाद जरूर ही होता है

समुद्र मंथन में से निकले 14 रत्नों में से एक शंख भी है. सनातन परंपरा में होने वाली पूजा में शंख का अत्यधिक महत्व है. हिंदू धर्म में लगभग सभी देवी-देवताओं ने अपने हाथों में शंख धारण किया है. शंख को जैन, बौद्ध, शैव, वैष्णव आदि परंपराओं में अत्यंत शुभ माना गया है. भगवान विष्णु का तो ये अत्यंत प्रिय है. यही वजह है कि जहां कहीं भी भगवान श्री नारायण की पूजा होती है, वहां शंखनाद जरूर ही होता है.

इस तरह हुई शंख की उत्पत्ति

शंख हमारे जीवन से जुड़ी वो पवित्र वस्तु है जो उपासना से लेकर उपचार तक में काम आती है. इसे लेकर ऐसी मान्यता है कि शंख की उत्पत्ति भगवान विष्णु के भक्त दंभ के बेटे दानव से हुई थी. कहते हैं कि इसी शंखचूड़ की अस्थियों में विभिन्न प्रकार के शंखों का निर्माण हुआ था.

पूजा में क्यों जरूरी है शंख?

प्राचीन काल से ही हमारे ऋषि-मुनि अपनी पूजा-साधना में शंख ध्वनि का प्रयोग करते रहे हैं. श्रीहरि का प्रिय वाद्य यंत्र किसी साधक की मनोकामना को पूर्ण करके उसके जीवन को सुखमय बनाता है. मान्यता है कि शंख बजाने से जहां तक उसकी ध्वनि जाती है, वहां तक की सभी बाधाएं, दोष आदि दूर हो जाते हैं. शंख से निकलने वाली ध्वनि नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट कर देती है.

कैसे करें शंख का पूजन?

घर में नया शंख लाने के बाद सबसे पहले उसे किसी साफ बर्तन में रख लें. फिर उसे अच्छी तरह से जल से साफ कर लें. इसके बाद उसे गाय के कच्चे दूध से स्नान कराएं. इसके बाद गंगाजल से स्नान कराएं. फिर शंख को साफ कपड़े से पोंछकर चंदन, पुष्प, धूप आदि से पूजन करें. इसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी से निवेदन करें कि वो इस शंख में निवास करें. शुभ फलों की प्राप्ति के लिए प्रतिदिन पूजा करने से पहले इसी तरह शंख की पूजा करके ही बजाएं.

शंख के लाभ

शंख समुद्र मंथन के दौरान माता लक्ष्मी के साथ ही उत्पन्न हुआ था. ऐसे में शंख को माता लक्ष्मी का भाई माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि जिस घर में शंख होता है, वहां पर माता लक्ष्मी का सदैव वास होता है. दक्षिणावर्ती शंख को देवता समान माना गया है. इसे पूजा घर में रखना और बजाना अत्यंत शुभ माना जाता है. शंख को हमेशा पूजा स्थान पर जल भरकर रखना चाहिए. शंख में जल भरकर घर में छिड़कने से घर की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है. घर में सुबह-शाम शंख बजाने से भूत-प्रेत की बाधा भी दूर होती है.

पूजा-पाठ, उत्सव, हवन, विजय उत्सव, आगमन विवाह, राज्याभिषेक आदि शुभ कार्यों में शंख बजाना शुभ और अनिवार्य माना जाता है। क्योंकि इसे विजय, समृद्धि, यश और शुभता का प्रतीक माना गया है। मंदिरों में सुबह और शाम के समय आरती में शंख बजाने का विधान है। शंखनाद के बिना पूजा-पाठ अधूरी मानी जाती है। साथ ही सभी धर्मों में शंखनाद को बड़ा ही पवित्र माना गया है। अथर्ववेद के चौथे कांड के दसवें सूक्त में कहा गया है कि शंख अंतरिक्ष वायु, ज्योतिर्मंडल और सुवर्ण से युक्त है। परंतु क्या आप जानते हैं कि कोई भी धार्मिक कार्य शुरू करने से पहले शंख क्यों बजाया जाता है? यदि नहीं, तो आगे इसे जानिए।

शास्त्रों में कहा गया है कि शंख की ध्वनि शत्रुओं को निर्बल करने वाली होती है। पुराणों में श्रीविष्णु का पांचजन्य, अर्जुन का देवदत्त आदि के शंखों का जिक्र है। पुराणों के अनुसार पूजा के समय जो व्यक्ति शंख बजाता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और वह भगवान विष्णु का आशीर्वाद पाता है। साथ ही शंख को सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद बजाने के पीछे की मान्यता यह है कि सूर्य की किरणें ध्वनि की तरंगों में बढ़ा डालती है।

शंख शंख एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- शंख (बहुविकल्पी) घोंघा

भारतीय संस्कृति में शंख (Conch) को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, शंख चंद्रमा और सूर्य के समान ही देवस्वरूप है।

इसके मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा और सरस्वती का निवास है। शंख से शिवलिंग, कृष्ण या लक्ष्मी विग्रह पर जल या पंचामृत अभिषेक करने पर देवता प्रसन्न होते हैं।

कल्याणकारी शंख दैनिक जीवन में दिनचर्या को कुछ समय के लिए विराम देकर मौन रूप से देव अर्चना के लिए प्रेरित करता है। यह भारतीय संस्कृति की धरोहर है। विज्ञान के अनुसार शंख समुद्र में पाए जाने वाले एक प्रकार के घोंघे का खोल है जिसे वह अपनी सुरक्षा के लिए बनाता है। समुद्री प्राणी का खोल शंख कितना चमत्कारी हो सकता है। ज़रूरत है इसके और अनुसन्धान वा वैज्ञानिक विश्लेषण की। उड़ीसा में जगन्नाथपुरी शंख-क्षेत्र कहा जाता है 

क्योंकि इसका भौगोलिक आकार शंख सदृश है।[1] हिन्दू धर्म में पूजा स्थल पर शंख रखने की परंपरा है क्योंकि शंख को सनातन धर्म का प्रतीक माना जाता है। शंख निधि का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस मंगलचिह्न को घर के पूजास्थल में रखने से अरिष्टों एवं अनिष्टों का नाश होता है और सौभाग्य की वृद्धि होती है। स्वर्गलोक में अष्टसिद्धियों एवं नवनिधियों में शंख का महत्त्वपूर्ण स्थान है। हिन्दू धर्म में शंख का महत्त्व अनादि काल से चला आ रहा है। शंख का हमारी पूजा से निकट का सम्बन्ध है। कहा जाता है कि शंख का स्पर्श पाकर जल गंगाजल के सदृश पवित्र हो जाता है। मन्दिर में शंख में जल भरकर भगवान की आरती की जाती है। 

आरती के बाद शंख का जल भक्तों पर छिड़का जाता है जिससे वे प्रसन्न होते हैं। जो भगवान कृष्ण को शंख में फूल, जल और अक्षत रखकर उन्हें अर्ध्य देता है, उसको अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है। शंख में जल भरकर ऊँ नमोनारायण का उच्चारण करते हुए भगवान को स्नान कराने से पापों का नाश होता है। धार्मिक कृत्यों में शंख का उपयोग किया जाता है। पूजा-आराधना, अनुष्ठान-साधना, आरती, महायज्ञ एवं तांत्रिक क्रियाओं के साथ शंख का वैज्ञानिक एवं आयुर्वेदिक महत्त्व भी है। हिन्दू मान्यता के अनुसार कोई भी पूजा, हवन, यज्ञ आदि शंख के उपयोग के बिना पूर्ण नहीं माना जाता है। कुछ गुह्य साधनाओं में इसकी अनिवार्यता होती है। शंख साधक को उसकी इच्छित मनोकामना पूर्ण करने में सहायक होते हैं तथा जीवन को सुखमय बनाते हैं।

 शंख को विजय, समृद्धि, सुख, यश, कीर्ति तथा लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है। वैदिक अनुष्ठानों एवं तांत्रिक क्रियाओं में भी विभिन्न प्रकार के शंखों का प्रयोग किया जाता है। शंख हर युग में लोगों को आकर्षित करते रहे है। देव स्थान से लेकर युद्ध भूमि तक, सतयुग से लेकर आज तक शंखों का अपना एक अलग महत्त्व है। पूजा में इसकी ध्वनि जहाँ श्रद्धा वा आस्था का भाव जगाती है वहीं युद्ध भूमि में जोश पैदा करती है। 

रण भूमि में शंखों का पहली बार उपयोग देव-असुर संग्राम में हुआ था। देव दानवों के इस युद्ध में सभी देव-दानव अपने अपने शंखों के साथ युद्ध भूमि में आए थे। शंखों कि ध्वनि के साथ युद्ध शुरू होता और उसी के साथ ख़त्म होता था। तभी से यह माना जाता है कि हर देवी-देवता का अपना एक अलग शंख होता है। साधारणत: मंदिर में रखे जाने वाले शंख उल्टे हाथ के तरफ खुलते हैं और बाज़ार में आसानी से ये कहीं भी मिल जाते हैं 

लेकिन क्या आपने कभी ध्यान से किसी लक्ष्मी के पूराने फोटो को ध्यान से देखा है इन चित्रो में लक्ष्मी के हाथ में जो शंख होता है वो दक्षिणावर्ती अर्थात सीधे हाथ की तरफ खुलने वाले होते हैं। वामावर्ती शंख को जहां विष्णु का स्वरूप माना जाता है और दक्षिणावर्ती शंख को लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। दक्षिणावृत्त शंख घर में होने पर लक्ष्मी का घर में वास रहता है। तंत्र शास्त्र के अनुसार सीधे हाथ की तरफ खुलने वाले शंख को यदि पूर्ण विधि-विधान के साथ करके इस शंख को लाल कपड़े में लपेटकर अपने घर में अलग- अलग स्थान पर रखने से विभिन्न परेशानियों का हल हो सकता है।

 दक्षिणावर्ती शंख को तिज़ोरी मे रखा जाए तो घर में सुख-समृद्धि बढ़ती है। इसलिए घर में शंख रखा जाना शुभ माना जाता है। शंख का वास्‍तु महत्‍व - शंख का सिर्फ़ धार्मिक वा देव लोक तक ही महत्त्व नहीं है। इसका वास्तु के रूप में महत्त्व भी माना जाता है। वर्तमान समय में वास्तु-दोष के निवारण के लिए जिन चीज़ों का प्रयोग किया जाता है, उनमें से यदि शंख आदि का उपयोग किया जाए तो कई प्रकार के लाभ हो सकते हैं।

 यह न केवल वास्तु-दोषों को दूर करता है, बल्कि आरोग्य वृद्धि, आयुष्य प्राप्ति, लक्ष्मी प्राप्ति, पुत्र प्राप्ति, पितृ-दोष शांति, विवाह में विलम्ब जैसे अनेक दोषों का निराकरण एवं निवारण भी करता है। इसे पापनाशक बताया जाता है। अत शंख का विभिन्न प्रकार की कामनाओं के लिए प्रयोग किया जा सकता है। कहते है कि जिस घर में नियमित शंख ध्वनि होती है वहां कई तरह के रोगों से मुक्ति मिलती है। इनके पूजन से श्री समृद्धि आती है।

[2] शंख पूजा का महत्त्व - सभी वैदिक कार्यों में शंख का विशेष स्थान है। शंख का जल सभी को पवित्र करने वाला माना गया है, इसी वजह से आरती के बाद श्रद्धालुओं पर शंख से जल छिड़का जाता है। साथ ही शंख को लक्ष्मी का भी प्रतीक माना जाता है, इसकी पूजा महालक्ष्मी को प्रसन्न करने वाली होती है। इसी वजह से जो व्यक्ति नियमित रूप से शंख की पूजा करता है उसके घर में कभी धन अभाव नहीं रहता। शास्त्रों के अनुसार श्रीकृष्ण का स्वरूप कहे जाने वाले माह मार्गशीर्ष में उन्हीं के पंचजन्य शंख की पूजा का विशेष महत्त्व है। अगहन मास में शंख पूजा से सभी मनोवांछित फल प्राप्त हो जाते हैं। शंख को देवता का प्रतीक मानकर पूजा जाता है एवं इसके माध्यम से अभीष्ट की प्राप्ति की जाती है। शंख की विशिष्ट पूजन पद्धति एवं साधना का विधान भी है। 

[3] पंचजन्य की पूजा भी भगवान श्री हरि की आराधना के समान ही पुण्य देने वाली मानी गई है। विधि-विधान से इस माह शंख की पूजा की जानी चाहिए। जिस प्रकार सभी देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, वैसे ही शंख का भी पूजन करें। अर्चना करते समय इस मंत्र का जप करें - त्वं पुरा सागरोत्पन्न विष्णुना विधृत: करे। निर्मित: सर्वदेवैश्च पाञ्चजन्य नमोऽस्तु ते। तव नादेन जीमूता वित्रसन्ति सुरासुरा:। शशांकायुतदीप्ताभ पाञ्चजन्य नमोऽस्तु ते॥ शंख-ध्वनि / शंख बजाना - शंख-ध्वनि शंख-ध्वनि शंख-ध्वनि शंख नाद का प्रतीक है।

 नाद जगत में आदि से अंत तक व्याप्त है। सृष्टि का आरंभ भी नाद से ही होता है और विलय भी उसी में होता है। दूसरे शब्दों में शंख को ॐ का प्रतीक माना जाता है, इसलिए पूजा-अर्चना आदि समस्त मांगलिक अवसरों पर शंख ध्वनि की विशेष महत्ता है। हिन्दू संस्कृति में पूजा और अनुष्ठान के समय शंख बजाने की परंपरा है जो बहुत पुरानी है। जैन, बौद्ध, शाक्त, शैव, वैष्णव आदि सभी संप्रदायों में शंख ध्वनि शुभ मानी गई है। 

शंख ध्वनि किसी का ध्यान आकर्षित करने या कोई संकेत देने के लिए की जाती है। दूसरी बात ये कि क्योंकि शंख पानी से निकलता है और पानी को जीवन से जोड़ा जाता है इसलिए इसे जीवन का प्रतीक भी माना जाता है। तीसरा ये कि किसी राजदरबार में राजा के आगमन की सूचना शंख बजाकर दी जाती थी और सबसे प्रचलित शंख ध्वनि युद्ध के प्रारंभ और अंत की सूचना के लिए की जाती थी। महाभारत युद्ध में शंख ध्वनि की विशद चर्चा है। 

कई योद्धाओं के शंखों के नाम भी गिनाए गए हैं जिसमें कृष्ण के पांचजन्य शंख की विशेष महत्ता बताई गई है। जहां तक तीन बार शंख बजाने की परंपरा है वह आदि, मध्य और अंत से जुड़ी है। वैदिक मान्यता के अनुसार शंख को विजय घोष का प्रतीक माना जाता है। कार्य के आरम्भ करने के समय शंख बजाना शुभता का प्रतीक माना जाता है। इसके नाद से सुनने वाले को सहज ही ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव हो जाता है और मस्तिष्क के विचारों में भी सकारात्मक बदलाव आ जाता है।

[4] हमारे यहां शंख बजाना एक धार्मिक अनुष्ठान है। पूजा आरती, कथा, धार्मिक अनुष्टानों, हवन, यज्ञ आदि के आरंभ व अंत में भी शंख-ध्वनि करने का विधान है। 

इसके पीछे धार्मिक आधार तो है ही, वैज्ञानिक रूप से भी इसकी प्रामाणिकता सिद्ध हो चुकी है। और शंख बजाने वाले व्यक्ति को स्वास्थ्य लाभ भी मिलता है। शंख की पवित्रता और महत्त्व को देखते हुए हमारे यहां सुबह और शाम शंख बजाने की प्रथा शुरू की गई है। मंदिरों में नियमित रूप से और बहुत से घरों में पूजापाठ, धार्मिक अनुष्ठान, व्रत, कथा, जन्मोत्सव आदि अवसरों पर शंख बजाना एक शुभ परम्परा मानी जाती है। 

कहा जाता है कि शंख बजाने से घर के बाहर की आसुरी शक्तियां घर के भीतर प्रवेश नहीं कर पाती हैं। पारद शिवलिंग, पार्थिव शिवलिंग एवं मंदिरों में शिवलिंगों पर रुद्राभिषेक करते समय शंख-ध्वनि की जाती है। आरती, धार्मिक उत्सव, हवन-क्रिया, राज्याभिषेक, गृह-प्रवेश, वास्तु-शांति आदि शुभ अवसरों पर शंख-ध्वनि से लाभ मिलता है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार शंख बजाने से भूत-प्रेत, अज्ञान, रोग, दुराचार, पाप, दुषित विचार और ग़रीबी का नाश होता है। शंख बजाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। 

महाभारत काल में श्रीकृष्ण द्वारा कई बार अपना पंचजन्य शंख बजाया गया था। पितृ-तर्पण में शंख की अहम भूमिका होती है। शंख में ओम ध्वनि प्रतिध्वनित होती है, इसलिए ओम से ही वेद बने और वेद से ज्ञान का प्रसार हुआ। पुराणों और शास्त्रों में शंख ध्वनि को कल्याणकारी कहा गया है। इसकी ध्वनि विजय का मार्ग प्रशस्त करती है। शंख की ध्वनि से भक्तों को पूजा-अर्चना के समय की सूचना मिलती है। आरती के समापन के बाद इसकी ध्वनि से मन को शांति मिलती है। शंख के प्रकार शंख के प्रकार महालक्ष्मी / वामावृत्ति शंख भगवान विष्णु जी / दक्षिणावृत्ति शंख गणेश शंख / विघ्नहर्ता शंख शंख कई प्रकार के होते हैं और सभी प्रकारों की विशेषता एवं पूजन-पद्धति भिन्न-भिन्न है। 

उच्च श्रेणी के श्रेष्ठ शंख कैलाश मानसरोवर, मालद्वीप, लक्षद्वीप, कोरामंडल द्वीप समूह, श्रीलंका एवं भारत में पाये जाते हैं। शंख की आकृति (उदर) के आधार पर इसके प्रकार माने जाते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं - दक्षिणावृत्ति शंख, मध्यावृत्ति शंख तथा वामावृत्ति शंख। जो शंख दाहिने हाथ से पकड़ा जाता है, वह दक्षिणावृत्ति शंख कहलाता है। जिस शंख का मुँह बीच में खुलता है, वह मध्यावृत्ति शंख होता है तथा जो शंख बायें हाथ से पकड़ा जाता है, वह वामावृत्ति शंख कहलाता है। शंख का उदर दक्षिण दिशा की ओर हो तो दक्षिणावृत्त और जिसका उदर बायीं ओर खुलता हो तो वह वामावृत्त शंख है। मध्यावृत्ति एवं दक्षिणावृति शंख सहज रूप से उपलब्ध नहीं होते हैं। 

इनकी दुर्लभता एवं चमत्कारिक गुणों के कारण ये अधिक मूल्यवान होते हैं। इनके अलावा लक्ष्मी शंख, गोमुखी शंख, कामधेनु शंख, विष्णु शंख, देव शंख, चक्र शंख, पौंड्र शंख, सुघोष शंख, गरुड़ शंख, मणिपुष्पक शंख, राक्षस शंख, शनि शंख, राहु शंख, केतु शंख, शेषनाग शंख, कच्छप शंख आदि प्रकार के होते हैं। हिन्दुओं के 33 करोड़ देवता हैं। सबके अपने- अपने शंख हैं। देव-असुर संग्राम में अनेक तरह के शंख निकले, इनमे कई सिर्फ़ पूजन के लिए होते है। गणेश शंख / विघ्नहर्ता शंख - समुद्र मंथन के समय देव- दानव संघर्ष के दौरान समुद्र से 14 अनमोल रत्नों की प्राप्ति हुई। जिनमें आठवें रत्न के रूप में शंखों का जन्म हुआ। 

जिनमें सर्वप्रथम पूजित देव गणेश के आकर के गणेश शंख का प्रादुर्भाव हुआ जिसे गणेश शंख कहा जाता है। इसे प्रकृति का चमत्कार कहें या गणेश जी की कृपा की इसकी आकृति और शक्ति हू-ब-हू गणेश जी जैसी है। गणेश शंख प्रकृति का मनुष्य के लिए अनूठा उपहार है। निशित रूप से वे व्यक्ति परम सौभाग्यशाली होते हैं जिनके पास या घर में गणेश शंख का पूजन दर्शन होता है। भगवान गणेश सर्वप्रथम पूजित देवता हैं। 

इनके अनेक स्वरूपों में यथा- विघ्न नाशक गणेश, दरिद्रतानाशक गणेश, कर्ज़ मुक्तिदाता गणेश, लक्ष्मी विनायक गणेश, बाधा विनाशक गणेश, शत्रुहर्ता गणेश, वास्तु विनायक गणेश, मंगल कार्य गणेश आदि- आदि अनेकों नाम और स्वरूप गणेश जी के जन सामान्य में व्याप्त हैं। गणेश जी की कृपा से सभी प्रकार की विघ्न- बाधा और दरिद्रता दूर होती है। जहाँ दक्षिणावर्ती शंख का उपयोग केवल और केवल लक्ष्मी प्राप्ति के लिए किया जाता है। वही श्री गणेश शंख का पूजन जीवन के सभी क्षेत्रों की उन्नति और विघ्न बाधा की शांति हेतु किया जाता है।

 इसकी पूजा से सकल मनोरथ सिद्ध होते है। गणेश शंख आसानी से नहीं मिलने के कारण दुर्लभ होता है। सौभाग्य उदय होने पर ही इसकी प्राप्ति होती है। इस भौतिक अर्थ प्रधान प्रतिस्पर्धा के युग में बिना अर्थ सब व्यर्थ है। आर्थिक, व्यापारिक और पारिवारिक समस्याओं से मुक्ति पाने का श्रेष्ठ उपाय श्री गणेश शंख है। अपमानजनक कर्ज़ बाधा इसकी स्थापना से दूर हो जाती है। इस शंख की आकृति भगवान गणपति के सामान है। शंख में निहित सूंड का रंग अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्य युक्त है। 

प्रकृति के रहस्य की अनोखी झलक गणेश शंख के दर्शन से मिलती है। विधिवत सिद्ध और प्राण प्रतिष्ठित गणेश शंख की स्थापना चमत्कारिक अनुभूति होती ही है। किसी भी बुधवार को प्रातः स्नान आदि से निवृत्ति होकर विधिवत प्राण प्रतिष्ठित श्री गणेश शंख को अपने घर या व्यापार स्थल के पूजा घर में रख कर धूप- दीप पुष्प से संक्षिप्त पूजन करके रखें। ये अपने आप में चैतन्य शंख है। इसकी स्थापना मात्र से ही गणेश कृपा की अनुभूति होने लगाती है। इसके सम्मुख नित्य धूप- दीप जलना ही पर्याप्त है किसी जटिल विधि- विधान से पूजा करने की जरुरत नहीं है। भगवान शंकर रुद्र शंख को बजाते थे। जबकि उन्होंने त्रिपुराशुर के संहार के समय त्रिपुर शंख बजाया था।

[5] महालक्ष्मी शंख - इसका आकार श्री यंत्र क़ी भांति होता है। इसे प्राक्रतिक श्री यंत्र भी माना जाता है। जिस घर में इसकी पूजा विधि विधान से होती है वहाँ स्वयं लक्ष्मी जी का वाश होता है। इसकी आवाज़ सुरीली होती है। विद्या क़ी देवी सरस्वती भी शंख धारण करती है। वे स्वयं वीणा शंख कि पूजा करती है। माना जाता है कि इसकी पूजा वा इसके जल को पीने से मंद बुद्धि व्‍यक्ति भी ज्ञानी हो जाता है।

[6] दक्षिणावर्ती शंख - स्वयं भगवान विष्णु अपने दाहिने हाथ में दक्षिणावर्ती शंख धारण करते है। पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के समय यह शंख निकला था। जिसे स्वयं भगवान विष्णु जी ने धारण किया था। यह ऐसा शंख है जिसे बजाया नहीं जाता, इसे सर्वाधिक शुभ माना जाता है। महाभारत युद्ध और शंख - महाभारत में शंख-नाद करते श्री कृष्ण और अर्जुन महाभारत में युद्ध के आरंभ, युद्ध के एक दिन समाप्त होने आदि मौकों पर शंख-ध्वनि करने का ज़िक्र आया है। महाभारत काल में सभी योद्धाओं ने युद्ध घोष के लिए अलग-अलग शंख बजाए थे। 


महाभारत काल में श्रीकृष्ण द्वारा कई बार अपना पंचजन्य शंख बजाया था। महाभारत युद्ध के समय भगवान श्रीकृष्ण ने पांचजन्य शंख को बजा कर युद्ध का जयघोष किया था। कहते है कि यह शंख जिसके पास होता है उसकी यश गाथा कभी कम नहीं होती। महाभारत के इसी युद्ध में अर्जुन ने देवदत्त नाम का शंख बजाया था। 


वहीं युधिष्ठिर के पास अनंत विजय नाम का शंख था, जिसे उन्होंने रण भूमि में बजाया था। इस शंख कि ध्वनि की ये विशेषता मानी जाती है कि इससे शत्रु सेना घबराती है और खुद कि सेना का उत्साह बढता है। भीष्म ने पोडरिक नामक शंख बजाया था। इस शंख की आवाज़ से कौरवों की सेना में हलचल मच गई थी।





GURUDEV SANTOSH TRIPATHI

आम इंसान की समस्‍याओं और चिंताओं की नब्‍ज पकड़कर बाजार में बैठे फर्जी बाबा और ढोंगी लोग ज्‍योतिष के नाम पर ठगी के लिए इस प्रकार के दावे करते हैं। ज्‍योतिष विषय अपने स्‍तर पर ऐसा कोई दावा नहीं करता।

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