दस महाविद्याओं में माँ तारा महाविद्या (Tara Mahavidya In Hindi) को द्वितीय विद्या के रूप में जाना जाता हैं जो माँ सती के 10 रूपों में से दूसरा रूप थी। माँ तारा का रूप माँ काली के समकक्ष कहा जा सकता हैं जिस कारण यह काली कुल में आती हैं। माँ का यह रूप भक्तों को आर्थिक क्षेत्र में उन्नति व जीवन में मोक्ष प्रदान कराने वाला (Tara Devi Dasa Mahavidya) हैं।
तारा महाविद्या की कथा (Mahavidya Tara Story In Hindi)
यह कथा बहुत ही रोचक हैं जो भगवान शिव व उनकी प्रथम पत्नी माता सती से जुड़ी हुई हैं। हालाँकि उनकी दूसरी पत्नी माता पार्वती माँ सती का ही पुनर्जन्म मानी जाती हैं। तारा महाविद्या की कहानी के अनुसार, एक बार माता सती के पिता राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन करवाया था।
चूँकि राजा दक्ष भगवान शिव से द्वेष भावना रखते थे और अपनी पुत्री सती के द्वारा उनसे विवाह किये जाने के कारण शुब्ध थे, इसलिए उन्होंने उन दोनों को इस यज्ञ में नही बुलाया। भगवान शिव इस बारे में जानते थे लेकिन माता सती इस बात से अनभिज्ञ थी।
यज्ञ से पहले जब माता सती ने आकाश मार्ग से सभी देवी-देवताओं व ऋषि-मुनियों को उस ओर जाते देखा तो अपने पति से इसका कारण पूछा। भगवान शिव ने माता सती को सब सत्य बता दिया और निमंत्रण ना होने की बात कही। तब माता सती ने भगवान शिव से कहा कि एक पुत्री को अपने पिता के यज्ञ में जाने के लिए निमंत्रण की आवश्यकता नही होती है।
माता सती अकेले ही यज्ञ में जाना चाहती थी। इसके लिए उन्होंने अपने पति शिव से अनुमति मांगी किंतु उन्होंने मना कर दिया। माता सती के द्वारा बार-बार आग्रह करने पर भी शिव नही माने तो माता सती को क्रोध आ गया और उन्होंने शिव को अपनी महत्ता दिखाने का निर्णय लिया।
तब माता सती ने भगवान शिव को अपने 10 रूपों के दर्शन दिए जिनमे से दूसरी देवी तारा थी। मातारानी के यही 10 रूप 10 महाविद्या कहलाए। अन्य नौ रूपों में क्रमशः काली, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी व कमला आती हैं।
तारा महाविद्या का रूप (Mahavidya Tara Devi Ka Roop)
माँ काली व माँ तारा के रूप में कई समानताएं हैं लेकिन कुछ चीज़े हैं जो दोनों को अलग रूप प्रदान करती हैं। माँ तारा का वर्ण नीला हैं जिस कारण इनका एक नाम नील सरस्वती भी हैं। इनके सिर पर एक मुकुट हैं जिस पर अर्ध चंद्रमा हैं और केश खुले व बिखरे हुए हैं।
मुख थोड़ा सा खुला हुआ व आश्चर्यचकित मुद्रा में हैं। माँ खुले मुख से हँसते हुए भी दिखाई दे रही हैं। गले में भगवान शिव की भांति सर्प लपेटे हुए है। माँ के चार हाथ हैं जिनमें से एक में खड्ग, दूसरे में तलवार, तीसरे में कमल का फूल व चौथे में कैंची पकड़ी हुई हैं।
माँ के कुछ भिन्न रूपों में उनके एक हाथ में तलवार की बजाए कटोरा पकड़े हुए दिखाया गया हैं। कुछ में उनकी जीभ थोड़ी सी बाहर निकली हुई दिखाई गयी हैं जिसमें से रक्त बह रहा हैं तो कुछ में उनके हाथ में राक्षस की खोपड़ी भी पकड़ायी गयी हैं।
माँ के गले में राक्षसों के कटे हुए सिर की माला हैं तो नीचे वस्त्र के रूप में बाघ की खाल लपेटे हुए हैं। माँ का यह रूप भीषण होने के साथ-साथ अपने भक्तों को अभय प्रदान करने वाला हैं।
माँ तारा रहस्य (Maa Tara Devi Ka Mahatva)
माँ तारा से एक मार्मिक कथा जुड़ी हुई हैं जो उनके मातृत्व भाव को दर्शाती हैं। यह कथा समुंद्र मंथन के समय से जुड़ी हुई हैं। सतयुग में देव-दानवों के बीच जब समुंद्र मंथन का कार्य चल रहा था तब उसमें से अथाह मात्रा में विष निकला था। तब सृष्टि को उस विष के प्रभाव से बचाने के उद्देश्य से भगवान शिव ने उसे पी लिया था।
उस विष का प्रभाव इतना ज्यादा था कि भगवान शिव की आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा। वे मूर्छित होने ही वाले थे कि देवी दुर्गा ने माँ तारा का रूप धरा और भगवान शिव की माँ के रूप में उन्हें स्तनपान करवाया। माँ तारा के द्वारा स्तनपान कराए जाने के कारण भगवान शिव के ऊपर विष का प्रभाव कम हुआ और वे पुनः चेतन अवस्था में आ गए।
माँ तारा के इस कृत्य से उनका महत्व अत्यधिक बढ़ गया था तथा उन्हें भगवान शिव की माँ की उपाधि मिली थी। इस कारण भक्तगण माँ तारा को मातृत्व भाव से देखते हैं और उसी रूप में उनकी साधना करते हैं।
माँ तारा की माँ काली से भिन्नता (Kali Tara Mahavidya)
दोनों के रूप में बहुत सी समानताएं होने के कारण भक्तगण माँ तारा को माँ काली समझ बैठते हैं। इसलिए आज हम आपको दोनों के रूप में भिन्नता बताएँगे।
- माँ काली का रंग काला हैं जबकि माँ तारा का रंग नीला हैं।
- माँ काली नग्न अवस्था में हैं जबकि माँ तारा बाघ की खाल लपेटे हुए हैं।
- माँ काली की जीभ निकली हुई हैं जबकि माँ तारा का मुख हल्का खुला हुआ हैं।
- माँ काली के सिर पर कुछ नही हैं जबकि माँ तारा सिर पर अर्ध चंद्रमा के साथ मुकुट धारण किये हुए हैं।
- माँ काली के गले में केवल राक्षस खोपड़ियों की माला हैं जबकि माँ तारा के गले में सर्प भी हैं।
- माँ काली के हाथ में राक्षस की खोपड़ी, खड्ग व कटोरा हैं जबकि माँ तारा के साथ में खड्ग, तलवार, कैंची व कमल का फूल हैं।
माँ तारा साधना विधि (Tara Mahavidya Sadhna Vidhi)
माँ तारा की मुख्य साधना मुख्यतया तांत्रिकों द्वारा तंत्र व शक्ति विद्या प्राप्त करने के लिए की जाती हैं। इनकी साधना का समय मध्यरात्रि काल का होता हैं। सामान्य भक्तगण माँ तारा की पूजा अन्य माताओं की तरह सामान्य रूप से कर सकते हैं। इसके लिए माँ के किसी भी रूप को सामने रखकर बस मन में तारा देवी के रूप का ध्यान कर माँ तारा के मूल मंत्र का जाप करे। ऐसा करने से ही देवी तारा अपने भक्तों से प्रसन्न होती हैं और उन्हें आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
देवी तारा महाविद्या की पूजा मुख्य रूप से गुप्त नवरात्रों में की जाती हैं। गुप्त नवरात्रों में मातारानी की 10 महाविद्याओं की ही पूजा की जाती हैं जिसमे दूसरे दिन महाविद्या तारा की पूजा करने का विधान हैं।
तारा मंत्र जाप (Tara Mahavidya Mantra)
ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट्।।
तारा साधना के लाभ (Devi Tara Sadhna Benefits In Hindi)
माँ तारा का यह रूप अवश्य ही आपको भयंकर व डरावना लग सकता हैं लेकिन हैं बिल्कुल इसके विपरीत। माँ तारा अपने भक्तों को इस भौतिक व सांसारिक दुनिया से पार लगाती हैं या तारती हैं जिस कारण इनका नाम तारा पड़ा। हम सभी ईश्वर को तारणहार कहते हैं अर्थात हम सभी का उद्धार करने वाला। वही कार्य मातारानी का यह रूप करता हैं।
माँ तारा की साधना करने से भक्तों को ना केवल मोक्ष प्राप्त होता हैं बल्कि आर्थिक क्षेत्र में भी उन्नति देखने को मिलती हैं। यदि किसी कारणवश आप अपने व्यापार या नौकरी में उन्नति को लेकर संतुष्ट नही हैं तो निश्चय ही आपको माँ तारा की आराधना करनी चाहिए। इससे आर्थिक दृष्टि से प्रगति देखने को मिलेगी।
माँ तारा से संबंधित अन्य जानकारी
- माँ तारा से संबंधित रुद्रावतार तारकेश्वर महादेव हैं।
- माँ सती के 51 शक्ति पीठों में से एक शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में हैं जिसे तारापीठ के नाम से जाना जाता हैं। यहाँ देवी सती के नयन/ आँखें गिरी थी जिस कारण माँ तारा को नयनतारा के नाम से भी जाना जाता हैं।
- माँ तारा का एक और प्रसिद्ध मंदिर हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में हैं।
- माँ तारा के अन्य नाम एकजटा, नील सरस्वती, नयनतारा व उग्रतारा हैं।
- त्रेतायुग में भगवान श्रीराम के राजगुरु महर्षि वशिष्ठ थे। उनके द्वारा माँ तारा की पूजा-अर्चना कर सिद्धियाँ प्राप्त की गयी थी। महर्षि वशिष्ठ ने पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में तारापीठ में माँ तारा की साधना की थी और सिद्धियों को अर्जित किया था।
- देवी तारा की केवल हिंदू धर्म में ही नही अपितु बौद्ध धर्म में भी मान्यता हैं। मुख्यतया तिब्बती बौद्ध लोगों के बीच माँ तारा अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। वहां इन्हें सरंक्षण प्रदान करने वाली व अपने भक्तों का उद्धार करने वाली माता के रूप में पूजा जाता हैं। कहीं-कहीं महात्मा बुद्ध को भी माँ तारा के रूप में चित्रित किया गया हैं।
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