माता सती की दस महाविद्याओं में माँ धूमावती (Dhumavati Mata) उनकी सप्तम महाविद्या हैं। यह माँ सती के 10 रूपों में से सातवाँ रूप मानी जाती हैं जो मातारानी के विपरीत गुणों का प्रतिनिधित्व करती हैं। यह विश्व में कलह उत्पन्न करने वाली तथा भूख से व्याकुल माता का रूप है जिसे अनिष्ट के रूप में देखा गया (Dhumavati Mahavidya In Hindi) है।
मातारानी का यह रूप सुनकर आप भी धूमावती माता का रहस्य जानना चाहते होंगे। इसलिए आज हम आपको धूमावती माता का इतिहास, कथा, महत्व व साधना मंत्र के लाभ इत्यादि के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।
मां धूमावती की कथा (Dhumavati Mata Ki Kahani)
यह कथा बहुत ही रोचक हैं जो भगवान शिव व उनकी प्रथम पत्नी माता सती से जुड़ी हुई हैं। हालाँकि उनकी दूसरी पत्नी माता पार्वती माँ सती का ही पुनर्जन्म मानी जाती हैं। धूमावती महाविद्या की कहानी के अनुसार, एक बार माता सती के पिता राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन करवाया था।
चूँकि राजा दक्ष भगवान शिव से द्वेष भावना रखते थे और अपनी पुत्री सती के द्वारा उनसे विवाह किये जाने के कारण शुब्ध थे, इसलिए उन्होंने उन दोनों को इस यज्ञ में नही बुलाया। भगवान शिव इस बारे में जानते थे लेकिन माता सती इस बात से अनभिज्ञ थी।
यज्ञ से पहले जब माता सती ने आकाश मार्ग से सभी देवी-देवताओं व ऋषि-मुनियों को उस ओर जाते देखा तो अपने पति से इसका कारण पूछा। भगवान शिव ने माता सती को सब सत्य बता दिया और निमंत्रण ना होने की बात कही। तब माता सती ने भगवान शिव से कहा कि एक पुत्री को अपने पिता के यज्ञ में जाने के लिए निमंत्रण की आवश्यकता नही होती है।
माता सती अकेले ही यज्ञ में जाना चाहती थी। इसके लिए उन्होंने अपने पति शिव से अनुमति मांगी किंतु उन्होंने मना कर दिया। माता सती के द्वारा बार-बार आग्रह करने पर भी शिव नही माने तो माता सती को क्रोध आ गया और उन्होंने शिव को अपनी महत्ता दिखाने का निर्णय लिया।
तब माता सती ने भगवान शिव को अपने 10 रूपों के दर्शन दिए जिनमे से सातवीं माँ धूमावती थी। मातारानी के यही 10 रूप दस महाविद्या कहलाए। अन्य नौ रूपों में क्रमशः काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, बगलामुखी, मातंगी व कमला आती हैं।
धूमावती का अर्थ (Dhumavati Meaning In Hindi)
धूमावती अर्थात जिसका जन्म धुएं से हुआ हो। मातारानी का यह रूप धुएं के समान होता है। इसलिए उन्हें भगवान शिव के द्वारा धूमावती नाम दिया गया।
देवी धूमावती का रूप (Maa Dhumavati Ka Roop)
माँ धूमावती का रूप अत्यंत दरिद्र, शुष्क, दया योग्य वाला हैं। देवी धूमावती को एक विधवा बूढ़ी स्त्री के रूप में दिखाया गया हैं जिसमें उनके शरीर के अंगों पर जगह-जगह झुर्रियां पड़ चुकी हैं तथा वह कांप भी रहा हैं। धूमावती देवी का शरीर एकदम शुष्क व सफेद रंग का हैं तथा उन्होंने वस्त्र भी विधवा समान श्वेत ही धारण किये हुए हैं।
माँ ने जो वस्त्र पहने हुए हैं वे भी कई जगह से कटे-फटे व घिसे हुए हैं। उनके केश बिखरे हुए हैं व ऐसा लगता हैं जैसे माँ कई दिनों से नहाई ना हुई हो। इस कारण उनके केश, शरीर व वस्त्रों पर गंदगी जमा हो गयी हैं। उनका पूरा शरीर कंपायेमान हैं।
माँ का रूप भूख से व्याकुल व दरिद्र रूप में दिखाया गया हैं। उनका शरीर बिल्कुल पतला व अस्वस्थ प्रतीत होता हैं। वे एक बिना घोड़े के रथ पर बैठी दिख रही हैं जिसके शीर्ष पर एक कौवां बैठा हैं। माँ के एक हाथ में टोकरी तो दूसरा हाथ अभय मुद्रा में या ज्ञान देने की मुद्रा में हैं।
धूमावती माता का रहस्य (Dhumavati Mata Story In Hindi)
देवी धूमावती के इस निंदनीय रूप के पीछे एक रहस्य छुपा हुआ हैं। मान्यता हैं कि एक बार जब माता पार्वती को तीव्र भूख लगी तो उन्होंने भगवान शिव से भोजन माँगा। उस समय वहां भोजन उपलब्ध नही था तो शिवजी ने उन्हें कुछ समय प्रतीक्षा करने को कहा।
माता पार्वती ने कुछ समय तक प्रतीक्षा की लेकिन कुछ देर बाद उनकी भूख और ज्यादा बढ़ गयी जिस कारण वे और अधिक व्याकुल हो गयी। इसी व्याकुलता में देवी पार्वती भगवान शिव को ही निगल गयी। भगवान शिव को निगलते ही शिव के शरीर में स्थित समुंद्र मंथन का विष माता के शरीर को जलाने लगा जिस कारण उनके शरीर से धुआं निकलने लगा।
मातारानी का शरीर धीरे-धीरे बूढ़ा होता चला गया जिसमे जगह-जगह झुर्रियां पड़ गयी। इससे बेचैन होकर माता पार्वती ने शिव को अपने मुहं से बाहर उगल दिया। बाहर आकर भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा कि चूँकि तुम भूख से व्याकुल होकर अपने पति को ही निगल गयी थी, इसलिए तुम्हारे इस रूप को विधवा होने का श्राप मिलेगा।
बस इसी के बाद माता पार्वती के इस रूप को बूढ़ी विधवा का रूप होने की मान्यता मिली जिसे एक दरिद्र, भूख से व्याकुल व बेचैन स्त्री के रूप में दर्शाया गया हैं। इस रूप में मातारानी के मुख पर बेचैनी, व्याकुलता, दरिद्रता, संशय, तड़प, थकान इत्यादि एकसाथ प्रदर्शित होते हैं।
धूमावती माता का मंत्र (Maa Dhumavati Mantra)
ऊँ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा:।।
धूमावती साधना के लाभ (Dhumavati Sadhana Benefits In Hindi)
माँ धूमावती का यह रूप माँ के विपरीत गुणों को प्रदर्शित करता हैं। इसलिए इन्हें अलक्ष्मी या ज्येष्ठा भी बुलाया जाता हैं। देवी धूमावती एक तरह से माँ देवी के नकारात्मक रूप का साक्षात् प्रदर्शन हैं किंतु अपने इस रूप से माँ अपने भक्तों के कई संकटों को दूर करती हैं।
माँ धूमावती की पूजा करने से मनुष्य के संकटों का हरण होता हैं व उन्हें यदि किसी चीज़ का अभाव हैं तो वह दूर होता हैं। देवी धूमावती अपने भक्तों की हर प्रकार की कमी व भूख को शांत करती हैं तथा उन्हें अभय होने का आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
माँ धूमावती महाविद्या की पूजा मुख्य रूप से गुप्त नवरात्रों में की जाती हैं। गुप्त नवरात्रों में मातारानी की 10 महाविद्याओं की ही पूजा की जाती हैं जिसमे से सातवें दिन महाविद्या धूमावती की पूजा करने का विधान हैं।
माँ धूमावती से संबंधित अन्य जानकारी
- प्रथम वेद ऋग्वेद में माँ सती के धूमावती रूप को सुतरा कहा गया है।
- माँ धूमावती के कुछ अन्य नाम ज्येष्ठा, अलक्ष्मी व निरृति हैं।
- सुहागिन स्त्रियों के द्वारा माँ धूमावती की पूजा नही की जाती हैं।
- माँ को किसी भी प्रकार की रंगीन वस्तु नही चढ़ाई जाती हैं।
- देवी धूमावती का शक्तिपीठ मध्यप्रदेश राज्य के दतिया जिले में पितांबर पीठ हैं।
- धूमावती माँ से संबंधित रुद्रावतार धुमेश्वर महादेव हैं।
- एक अन्य कथा के अनुसार माँ धूमावती का यह रूप राजा दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में माँ सती के आत्म-दाह करने के पश्चात उसके धुएं से प्रकट हुआ था।
- यह श्रीकुल की सात देवियों में आती हैं।