माँ भुवनेश्वरी साधना (Maa Bhuvaneshwari Sadhana )

दस महाविद्याओं में चतुर्थ महाविद्या भुवनेश्वरी देवी (Bhuvaneshwari Devi In Hindi) को माना जाता है। माता सती के 10 रूपों में से भुवनेश्वरी देवी को चौथा रूप माना गया हैं जिसे उन्होंने शिवजी को अपनी महत्ता दिखाने के लिए प्रकट किया (Bhuvaneshwari Mahavidya Sadhana) था। बहुत से भक्तों के लिए माता भुवनेश्वरी रहस्य बनकर रह गयी हैं क्योंकि उन्हें माता के इस रूप के बारे में सही से जानकारी नही हैं।

इसलिए आज हम आपको भुवनेश्वरी माता की कहानी समेत उनकी उत्पत्ति, महत्ता व साधना मंत्र बताएँगे ताकि आप मातारानी के इस अद्भुत रूप के बारे में विस्तार से जान सके।




भुवनेश्वरी माता की कथा (Bhuvaneshwari Devi Story In Hindi)

यह कथा बहुत ही रोचक हैं जो भगवान शिव व उनकी प्रथम पत्नी माता सती से जुड़ी हुई हैं। हालाँकि उनकी दूसरी पत्नी माता पार्वती माँ सती का ही पुनर्जन्म मानी जाती हैं। भुवनेश्वरी महाविद्या की कहानी के अनुसार, एक बार माता सती के पिता राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन करवाया था।

चूँकि राजा दक्ष भगवान शिव से द्वेष भावना रखते थे और अपनी पुत्री सती के द्वारा उनसे विवाह किये जाने के कारण शुब्ध थे, इसलिए उन्होंने उन दोनों को इस यज्ञ में नही बुलाया। भगवान शिव इस बारे में जानते थे लेकिन माता सती इस बात से अनभिज्ञ थी।

यज्ञ से पहले जब माता सती ने आकाश मार्ग से सभी देवी-देवताओं व ऋषि-मुनियों को उस ओर जाते देखा तो अपने पति से इसका कारण पूछा। भगवान शिव ने माता सती को सब सत्य बता दिया और निमंत्रण ना होने की बात कही। तब माता सती ने भगवान शिव से कहा कि एक पुत्री को अपने पिता के यज्ञ में जाने के लिए निमंत्रण की आवश्यकता नही होती है।

माता सती अकेले ही यज्ञ में जाना चाहती थी। इसके लिए उन्होंने अपने पति शिव से अनुमति मांगी किंतु उन्होंने मना कर दिया। माता सती के द्वारा बार-बार आग्रह करने पर भी शिव नही माने तो माता सती को क्रोध आ गया और उन्होंने शिव को अपनी महत्ता दिखाने का निर्णय लिया।

तब माता सती ने भगवान शिव को अपने 10 रूपों के दर्शन दिए जिनमे से चौथी माँ भुवनेश्वरी थी। मातारानी के यही 10 रूप दस महाविद्या कहलाए। अन्य नौ रूपों में क्रमशः कालीताराषोडशीभैरवीछिन्नमस्ताधूमावतीबगलामुखीमातंगी व कमला आती हैं।

भुवनेश्वरी का अर्थ (Bhuvaneshwari Meaning In Hindi)

भुवनेश्वरी शब्द दो शब्दों के मेल से बना हैं। इसमें भुवन का अर्थ पृथ्वी या समस्त ब्रह्मांड से है जबकि ईश्वर का अर्थ विधाता या भगवान से है। इस प्रकार भुवनेश्वरी का मतलब हुआ जो पृथ्वी या समस्त ब्रह्मांड की माता हो। जिसके द्वारा इस ब्रह्मांड की रचना की गयी हो और जो जगत जननी हो।

भुवनेश्वरी महाविद्या का रूप (Dasa Mahavidya Bhuvaneshwari Ka Roop)

जब माता सती भगवान शिव को अपनी महत्ता दिखाने के लिए अपने विभिन्न रूप प्रकट कर रही थी तब उसमे से चौथे रूप में माता भुवनेश्वरी निकली जिनका रूप लगभग मातारानी के तीसरे रूप माता षोडशी के समान ही था। पहले तीन रूप मातारानी के काली कुल में आते हैं जबकि अन्य 7 रूप श्री कुल में। इस प्रकार माता भुवनेश्वरी श्री कुल की प्रथम माता कहलाई।

माता भुवनेश्वरी एक सिंहासन पर विराजमान हैं। उनका वर्ण उगते हुए सूर्य के समान सुनहरा हैं जिसमे से सूर्य के समान ही तेज निकलता हैं अर्थात माता भुवनेश्वरी में कई सूर्यों की शक्ति निहित हैं। इनके सिर पर मुकुट हैं जिस पर चंद्रमा सुसज्जित हैं व केश खुले हुए हैं। मातारानी ने लाल व पीले रंग के वस्त्र व कई तरह के आभूषण पहने हुए हैं।

भगवान शिव की ही भांति माता भुवनेश्वरी देवी के भी तीन नेत्र हैं। इनके चार हाथ हैं जिसमें से दो में उन्होंने अंकुश व फंदा पकड़ा हुआ हैं जबकि अन्य दो हाथ वरदान व अभय मुद्रा में हैं। मातारानी का यह रूप शांत मुद्रा में हैं जो अपने भक्तों को एकटक देख रहा हैं।

माँ भुवनेश्वरी साधना मंत्र (Bhuvaneshwari Devi Mantra)

ह्नीं भुवनेश्वरीयै ह्नीं नम:।।

देवी भुवनेश्वरी महाविद्या के लाभ (Bhuvaneshwari Mahavidya Benefits In Hindi)

माता भुवनेश्वरी की पूजा करने से भक्तों के पुत्र प्राप्ति की कामना पूरी होती हैं। जिन भक्तों को संतान प्राप्ति की इच्छा हैं वे मुख्य रूप से मातारानी के इस रूप की पूजा करते हैं। भुवनेश्वरी देवी की पूजा करने से भक्तों को आत्मिक ज्ञान व चित्त शांति का अनुभव होता हैं। माँ भुवनेश्वरी हमे जीवन के पंच तत्वों का मूल समझाती हैं तथा ब्रह्मांड में हमारा क्या महत्व हैं, इसके बारे में जागृत करती हैं।

माता भुवनेश्वरी में सूर्य के समान तेज हैं जिससे उनके अंदर अथाह ऊर्जा हैं। उनकी पूजा करने से हम अपने शरीर के अंदर एक अद्भुत ऊर्जा का संचार महसूस करते हैं जिससे काम को तीव्र गति से करने की प्रेरणा मिलती हैं।

माँ काली महाविद्या की पूजा मुख्य रूप से गुप्त नवरात्रों में की जाती हैं। गुप्त नवरात्रों में मातारानी की 10 महाविद्याओं की ही पूजा की जाती हैं जिसमे से सर्वप्रथम महाविद्या काली की पूजा करने का विधान हैं।

माँ भुवनेश्वरी से संबंधित अन्य जानकारी

  • माता भुवनेश्वरी को शाकम्भरी व शताक्षी नाम से भी जाना जाता हैं।
  • समस्त ब्रह्मांड की जननी होने के कारण इन्हें राज राजेश्वरी व जगत जननी भी कहते हैं।
  • इन्हें माता पार्वती का रूप भी कहा जाता हैं।
  • भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को माँ भुवनेश्वरी जयंती मनाई जाती है।
  • माँ भुवनेश्वरी से संबंधित रुद्रावतार भुवनेश्वर रुद्रावतार है।



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GURUDEV SANTOSH TRIPATHI

आम इंसान की समस्‍याओं और चिंताओं की नब्‍ज पकड़कर बाजार में बैठे फर्जी बाबा और ढोंगी लोग ज्‍योतिष के नाम पर ठगी के लिए इस प्रकार के दावे करते हैं। ज्‍योतिष विषय अपने स्‍तर पर ऐसा कोई दावा नहीं करता।

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